पूरा सिस्टम सोसायटी के दलालों के संग’..नारायणपुरी में फर्जीवाड़े की हो गई हदें पार!

इस बार खुलेगी भूमाफियाओं की पूरी पोल..


ऐसा कोई सगा नहीं जिसे हमने ठगा नहीं..पर्दाफाश-पार्ट-1


सिरसी रोड़, बिशनावाला स्थित नारायणपुरी ब्लॉक-ए में ‘म्यूचअल हाऊसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटी’ में संचालकों की मनमानी, सारे दस्तावेज कूटरचित और फर्जी और बैक डेट में दे दिए पट्टे


इस पूरे काले धंधे के दौरान जेडीए के अधिकारी भी मौन साधे बैठे रहे, नक्शों में बदलाव को भी किया अनदेखा, पूरे मामले की जांच में होंगे कई बड़े खुलासे

 यहां हर नियम को रखा गया तांक पर, विकास समिति लगातार इंसाफ के लिए कर रही संघर्ष, बहुत बड़े घोटाले की सुगबुगाहट, फिर भी प्रशासन मौन


जयपुर। राजधानी में हाउसिंग सोसायटियों ने फर्जीवाड़े की हदें पार कर दी है। यहां ना सिर्फ 20 सालों के बैकडेट में पट्टे दिए जा रहे है बल्कि हर नियम को तांक पर रखकर फर्जी दस्तावेजों और नक्शों से आंखों में धूल झोंकी जा रही है। दरअसल, यहां पूरा सिस्टम ही सोसायटियों के दलालों के संग है और प्रशासन मौन धारण किए हुए है। यहां बात हो रही है म्यूचअल हाऊसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड की जिनके कर्ताधर्ताओं ने फर्जीवाड़े की हदें पार कर दी है। मामला है इस सोसायटी द्वारा सृजित की गई आवासीय योजना ‘नारायणपुरी ब्लॉक-ए’ का जो सिरसी रोड़, बिशनावाला, जयपुर में स्थित है। इस आवासीय योजना में यूं तो कई खामियां ऐसी है जिसमें ना सिर्फ सोसायटी संचालक बल्कि पूरा जेडीए प्रशासन और सिस्टम ही सवालों के घेरे में आ जाता है। लेकिन ‘हमारा समाचार’ की पड़ताल में एक नहीं दो नहीं बल्कि कई ऐसी अनियमितताएं सामने आई है जिन्हें दरकिनार करना मुमकिन नहीं है। आज से प्रकाशित हो रही इस विशेष श्रृंखला में हमारा समाचार इसी काले कारोबार की पोल खोलने जा रहा है जो हर किसी को हैरान कर देने वाली है। श्रृंखला की पहली कड़ी में बात करें तो बैक डेट में पट्टे जारी करने का इस सोसायटी का तरीका हैरान कर देने वाला है। नियमों के अनुसार बैक डेट में पट्‌टे जारी करने वाली हाउसिंग सोसायटियों का पंजीयन निरस्त किया जाना चाहिए लेकिन इस म्यूचअल हाऊसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड पर तो पूरा प्रशासन ही मेहरबान है। 


ऐसे है इस म्यूचअल हाऊसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड के कारनामें, हों जाएंगे हैरान

पूरे प्राकरण के अनुसार नारायणपुरी-ए की आवासीय योजना वर्ष 1980 में सृजित की गई जिसमें साल 1995 तक भूखण्डधारियों को पट्टे एवं रसीद आवंटित की गई। लेकिन जमीनों के भाव बढ़ जाने के कारण सोयायटी के पूर्व सचिव दिनेश चौधरी व भूतपूर्व अध्यक्ष संजीव झाझडिय़ा ने बदनीयती से इस पूरे कांड़ को अंजाम दे दिया। दोनों आरोपियों ने समिति के रिकॉर्ड में हेरा-फेरी करते हुए एवं बैक डेट में पट्टे एवं रसीदें जारी कर दी और यहीं से इस पूरे मामले में बवाल खड़ा हो गया। इस पूरे प्रकरण में इंसाफ की लड़ाई लड़ रही नारायणपुरी स्कीम-ए की विकास समिति के गठन के बाद से ही जल्दबाजी में सोसायटी के कर्ताधर्ताओं ने इस पूरे खेल को अंजाम दिया। 

प्रशासक भी तैनात था और अवसायक भी, फिर भी फर्जीवाड़ा चलता रहा

इस पूरे मामले में सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि यह कि म्यूचअल हाऊसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड की निर्वाचित प्रबंध कार्यकारिणी का 9 जनवरी 1992 को समाप्त हो गया था। इसके तुरंत बाद से ही राजस्थान सहकारी संस्था अधिनियम-1965 की धारा-36-ए (ख) के अन्तर्गत उपरजिस्ट्रार सहकारी समिति जयपुर के आदेश पर 7 जुलाई 1995 को प्रबन्धकारिणी को भंग कर समिति पर प्रशासक नियुक्त किया गया था। 15 जनवरी 2004 तक उक्त समिति पर निरन्तर प्रशासक कार्यरत रहे और इसके पश्चात 15 जनवरी 2004 को उप रजिस्ट्रार सहकारी समिति जयपुर द्वारा राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम, 2001 की धारा-61 (1) के अन्तर्गत समिति को अवसायन में लाया जाकर सोसायटी पर अवसायक नियुक्त किया गया, जो कि निरन्तर जारी है। लेकिन प्रशासक और अवसायक की नियुक्ति के बाद भी सोसायटी के पूर्व सचिव दिनेश चौधरी और पूर्व अध्यक्ष संजीव झाझडिय़ा अपनी हरकतों से बाज नहीं आए और करीब 20 वर्ष पश्चात 28 नवंबर 2014 को समिति के रिकॉर्ड एवं दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा कर जेडीए में रिकॉर्ड प्रस्तुत कर दिया। जबकि उक्त सोसायटी के निर्वाचित संचालक मण्डल को भंग किये लगभग-20 वर्ष का समय  हो गया था।


एक ही योजना के चार नक्शे, हद तो यह कि जिम्मेदारों ने भी किया नजरअंदाज
हद तो तब हो गई जब सोसायटी के पूर्व सचिव दिनेश चौधरी द्वारा समिति की योजना नारायणपुरी-ए के सम्बंध में चार अलग-अलग नक्शे प्रस्तुत किए गए। इनमें पहला नक्शा दिनांक 30 जून 1994 को प्रस्तुत किया गया है, जो कि समिति पर नियुक्त प्रशासक द्वारा प्रमाणित है एवं उक्त नक्शे में भूखण्ड संख्या-114 से 118 की जगह पर पार्क दर्शाया गया है, वहीं एक दूसरा नक्शा सन् 1995 में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कोई दिनांक अंकित नहीं है। इसमें भूखण्ड संख्या-114 से 118 की जगह पर नक्शे में पार्क दर्शाया गया है। इसी स्कीम के सम्बंध में तीसरा नक्शा 29 सितम्बर 1999 में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें भी भूखण्ड संख्या-114 से 118 की जगह पर पार्क दर्शाया गया। यहां हैरानी वाली बात यह है कि साल 1999 में ना तो दिनेश चौधरी समिति का संयोजक था और ना ही चौधरी को उक्त नक्शे को जेडीए में जमा कराने का अधिकार था क्योंकि वर्ष 1999 में उक्त सोसायटी पर प्रशासक नियुक्त था। ऐसी स्थिति में केवल मात्र प्रशासक के द्वारा एवं उसके माध्यम से ही उक्त अवधि के दौरान समिति का रिकॉर्ड एवं नक्शा पेश किया जा सकता था।


मनमानी से प्रस्तुत किया चौथा नक्शा, पार्क की भूमि में ही अपने चहेतों को बांट दिए पट्टे

दिनेश चौधरी द्वारा एक चौथा नक्शा 28 नवंबर 2014 को जेडीए में प्रस्तुत किया गया, जिसमें दिनेश चौधरी ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुये भूखण्ड संख्या-114 से 118 में पार्क की जगह को बदनीयती से बदलते हुये बैक डेट में अपने परिवार के सदस्यों के नाम कूटरचित पट्टे बना लिये, जबकि जेडीए द्वारा कराये गये पी.टी. सर्वे में भी यह माना गया कि भूखण्ड संख्या-114 से 118 स्थित जगह पर पार्क स्थित है, ना कि उक्त जगह पर कोई भूखण्ड़ आवंटित किया गया है, जिससे स्पष्ट है, कि समिति के पूर्व अध्यक्ष एवं सचिव द्वारा अपने पास रखे रिकॉर्ड में हेरा-फेरी व कूटरचना कर अपने परिवार के सदस्यों के नाम बैंक डेट में पट्टे जारी कर दिये। हैरानी की बात यह है कि शिकायतों के बावजूद जांच के दौरान इस तथ्य के सम्बंध में कोई जांच नहीं की गयी है।