जयपुर में दिया स्वत: स्फूर्त समर्थन..प्रदेश में भी सफल रहा ‘भारत बंद’!

अनुसूचित जाति व जनजाति आरक्षण में क्रीमीलेयर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ देशभर में हुए विरोध प्रदर्शन, राजस्थान में व्यापक असर; कई राज्यों में मिलाजुला असर

जयपुर में बंद रहे अधिकांश बाजार और परिवहन व्यवस्था हुई ठप, हजारों ने निकाली रैली; सुबह से 25 टोलियां बंद को सफल बनाने में जुटी रही, टकराव टालने में सरकार सफल

जयपुर। अनुसूचित जाति व जनजाति आरक्षण में क्रीमीलेयर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ देशभर के विभिन्न संगठनों के आह्वान पर बुधवार को ‘भारत बंद’ रहा। राजस्थान में कांग्रेस, बसपा समेत कई पार्टिर्यों ने इस बंद का समर्थन किया। जयपुर में भारत बंद का व्यापक असर देखने को मिला। शहर में बाजार बंद नजर आए। बस और टैक्सी सेवा भी बंद के दौरान बाधित रही। लो-फ्लोर और रोडवेज बसों का संचालन भी बंद रहा। जेसीटीएसएल की ओर से लो-फ्लोर बसों को नजदीकी थानों में खड़ी करने एवं आगार के पास वाली गाडिय़ों को डिपो बुलाया गया। सिंधी कैंप बस स्टैंड से राजस्थान रोडवेज का संचालन सुबह 5 बजे से बंद रहा। ऐसे में जो यात्री यहां यात्रा करने के लिए पहुंचे, वे बसों का संचालन शुरू होने का इंतजार करते रहे। वहीं शहर में अलग-अलग जगह रैपिड एक्शन फोर्स को भी तैनात किया गया। भारत बंद का असर एशिया की सबसे बड़ी मंडी मुहाना में भी देखने को मिला। आम दिनों की अपेक्षा बुधवार को मंडी में 40 फीसदी व्यापार प्रभावित हुआ। फल-सब्जी मंडी अध्यक्ष योगेश तंवर ने बताया कि मंडी में व्यापारी कम ही आए। सब्जियां बहुत आई लेकिन उनके खरीदार नहीं आए। साथ ही शहर में आए दिन बंद को देखते हुए व्यापारियों ने अपना विरोध भी जताया है। परकोटे के व्यापारियों ने पुलिस प्रशासन से आगे से शहर में रैली निकालने की परमिशन नहीं देने का आग्रह किया है। व्यापारियों ने कहा है कि पुराने शहर में देश-विदेश से टूरिस्ट आते है। बंद के कारण टूरिस्ट अपना प्लान कैंसिल करवा लेते है। इससे व्यापारियों को कई दिनों तक नुकसान होता है।


राजधानी में सुबह से बंद करवाने निकली 25 टोलियां, हालांकि स्वत: स्फूर्त रहा समर्थन
जयपुर में 25 टीमें बनाई गई। इन टीमों अपने-अपने इलाके में टोलियों में रैली निकाली और बाजारों को बंद करवाया। बंद के समर्थन में बड़ी रैली रामनिवास बाग से शुरू हुई, जो चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार, बड़ी चौपड़, जौहरी बाजार, सांगानेरी गेट, एमआई रोड होते हुए रामनिवास बाग में आकर खत्म हुई। जयपुर, अलवर, दौसा, सवाई माधोपुर, डीग, जैसलमेर और भरतपुर में स्कूल-कॉलेजों के साथ समस्त शैक्षणिक संस्थाओं में छुट्टी की घोषणा कर दी गई थी जिससे स्कूल-कॉलेज और कोचिंग संस्थान बंद रहे। कोटा में निजी स्कूल संचालकों ने स्कूल बंद रखने का ऐलान किया था जिससे वें भी बंद नजर आए। 

कांग्रेस ने दिया बंद को दिया समर्थन, सरकार टकराव टालने में जुटी रही
बंद पर नजर डाले तो यह पूरी तरह सरकारी बंद दिखा। सरकार ने पहले ही बाजारों और स्कूलों को बंद करने की कवायद शुरू कर दी थी जिससे किसी भी तरह के टकराव को टाला जा सके। और, सरकार इसमें सफल भी रही। उधर-नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कहा-कांग्रेस कार्यकर्ता इस लड़ाई में साथ है। बीजेपी आरक्षण के खिलाफ है। उन्होंने कहा- जिस प्रकार भाजपा की मानसिकता है, वह संविधान को कमजोर करने की, आरक्षण को कमजोर करने की है। 


जयपुर में बंद रहा शांतिपूर्ण, हालांकि प्रदेश में कुछ जगह छिटपुट झड़पें
जयपुर सहित कई जिलों में बंद शांतिपूर्ण रहा लेकिन बीकानेर और जोधपुर सहित कुछ जगहों से छिटपुट झड़पों की खबरें भी सामने आई। अनुसूचित जाति-जनजाति संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक अनिल गोठवाल ने बताया- बंद को शांतिपूर्वक सफल बनाया गया। समिति किसी भी हिंसा का समर्थन नहीं करती है। आंदोलन के बारे में सोशल मीडिया पर जो कुछ चल रहा है, उसका हम समर्थन नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार कों एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर बनाने की अनुमति दी है। कोर्ट ने कहा कहा कि जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है उन्हें आरक्षण में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इस फैसले पर व्यापक बहस छिड़ गई है। भारत बंद का ऐलान करने वाले संगठन इसे फैसले को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।


राजस्थान में बंद रहा सफल, देश में मिला-जुला असर; यह है कारण
राजस्थान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी मिला दें तो ये 31 प्रतिशत है। ये राज्य की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा है। इसमें एससी 18 प्रतिशत और एसटी 13 प्रतिशत है। ये राजनीतिक तौर पर प्रभावी हैं। एससी के लिए 34 सीटें रिजर्व हैं, जबकि एसटी के लिए 25 सीटें रिजर्व हैं। साथ ही राजस्थान में आदिवासी समुदाय की मीणा जाति बड़ी संख्या में है। सामाजिक रूप से मीणा सक्रिय जाति रही है। इस जाति ने आरक्षण के मुद्दे को लेकर पहले भी कई आंदोलन किए हैं, इन्हें आंदोलन का अनुभव है। इसके साथ ही राजस्थान में दलित और आदिवासी नेता प्रभुत्वशाली हैं। 
 

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