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आज जब धर्म और राजनीति पर हिंदी के प्रगतिशील रचनाकार प्रेमचंद की दशकों पुरानी टिप्पणी याद आ रही है। उन्होंने कहा था..धर्म के साथ राजनीति बहुत खतरनाक हो जाती है। मैं उस धर्म को कभी स्वीकार नहीं करना चाहता, जो मुझे सिखाता...