जयपुर: जयपुर, अजमेर और नागौर तीन जिलों के बीच स्थित है भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की सांभर झील है। यहां स्थित शाकम्भरी देवी के मंदिर के नाम पर पहचानी जाने वाली यह विश्व प्रसिद्ध झील जिस तेजी के साथ सिमट रही है उससे इसके आने वाले समय में बस इतिहास में ही रह जाने का खतरा मंडरा रहा है कहते हैं नमक का कर्ज ऐसा कर्ज है जो चुकाए नहीं चुकता और एक बार जो किसी का नमक खा लेता है वो उम्र भर उसका कर्जदार हो जाता है। उत्तर भारत ने सदियों तक सांभर का नमक खाया है लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि सांभर अपने नमक का हक मांग रहा है पर कोई सुनने वाला नहीं है। कहने को अब सांभर एक पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित हो गया है लेकिन स्थानीय जनता अब भी रोजगार के लिए तरस रही है। उससे इसके आने वाले समय में बसइतिहास में ही रह जाने का खतरा मंडरा रहा स्थित मुख्य कस्बा सांभर, फुलेरा विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है। 90 वर्ग मील क्षेत्र में फैली इस झील का तीस फीसदी हिस्सा इस विधानसभा क्षेत्र में है। ऐसे में सहज ही लोगों की उम्मीद होती है कि झील के संरक्षण का मुद्दा भी इन चुनावों में एक बड़ा मुद्दा हो। जिन्दगी की आम जरूरत रोटी पानी और मकान के बाद सांभर का नमक ही लोगों की जुबान पर भी है। बेरोजगारी से जूझते इस विधानसभा क्षेत्र में रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। रोजाना हजारों लोग इस क्षेत्र से जयपुर, अजमेर व नावां क्षेत्र में रोजगार के लिए आना जाना करते हैं। इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है पानी का। जाहिर है खारे पानी की झील के किनारे बसे होने से जमीन से निकला पानी इतना खारा और फ्लोराइड युक्त है कि उसे पीना आसान नहीं है। सांभर झील मुगल काल से ही आमजन और शासकों के लिए आय का एक प्रमुख साधन रही है। इतिहास की बात करें तो एक जनश्रुति है कि इसका संबंध महाभारत काल से जुड़ा है। वहीं झील में स्थित शाकम्भरी देवी का मंदिर चौहान वंश की कुल देवी का है। मुगल काल में अकबर के समय इस झील से सालाना ढाई लाख की आमदनी से शुरूआत हो कर औरंगजेब के समय तक यहां से 15 लाख रुपए तक की आय होती थी। बाद में जोधपुर और जयपुर रियासत के बीच इस झील को लेकर विवाद रहा 1835 में ब्रिटिश सेनानायकों ने एक संधि के जरिए झील का कारोबार अपने जिम्मे ले लिया। इसके बाद यह अलग अलग अवधियों में जयपुर जोधपुर और ब्रिटिश कंपनी के साझा कारोबार में रही। 1870 में ब्रिटिश इंतजाम ने झील को लीज पर लेते हुए पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया और आजादी के बाद से यह केन्द्र सरकार के नियंत्रण में रही। हालांकि सांभर साल्ट्स ने भी निजीकरण की संभावनाओं को देखते हुए स्वयं के क्षेत्र में कांन्ट्रेक्ट पर नमक उत्पादन प्रारम्भ करवाया है लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां सांभर साल्ट्स का सालाना नमक उत्पादन 2 लाख 65 हजार मीट्रिक टन था वहीं नागौर जिले नावां क्षेत्र में अनुमानित नमक उत्पादन 25 से 30 लाख मीट्रिक टन है। रोजगार और नमक उत्पादन की इस लड़ाई से परे इसके अस्तित्व का संकट झील पर मंडरा रहा है। सांभर साल्ट के मार्केटिंग मैनेजर संपन्न गौड़ बताते हैं कि अजमेर नागौर क्षेत्र में निजी नमक उत्पादन कताओं को झील की सीमा के बाहर पांच किलोमीटर के क्षेत्र में नमक उत्पादन के अनुमति है लेकिन वे झील में कई किलोमीटर अट्दर तक आ कर बोरिंग के जरिए झील के नीचे से लवणीय जल खींच कर उससे नमक बना रहे हैं। इससे झील के नीचे की जमीन पोली होने लगी है। यही कारण है जनवरी 2017 में इस क्षेत्र में रिक्टर स्केल पर 4.7 तीव्रता का भूकम्प भी आया था जिसका केन्द्र नांवा था। झील से अवैध जल दोहन पर अंकुश लगाने के लिए एनजीटी
के हस्तक्षेप के बाद कई अवैध बिजली के कनेक्शन काटे गए। यहां आरएसी की बटालियनों ने भी डेरा डाला और झील के किनारे किनारे गश्त कर अवैध रूप से पानी की निकासी पर अंकुश लगाने का प्रयास किया था। लेकिन यह भी वक्त की बात भर है। मुद्दा उठता है तो सख्ती होती है, अन्यथा झील के सीने से पानी खींच रहे नमक माफिया के साथ मिल प्रशासन भी चुप्पी साथ लेता है। इसके साथ ही झील में पानी की आवक भी लगातार कम होती जा रही है। खारड़िया, रुपनगढ़, तुरतमती, मिंडा और डाबसी नदियों से इस झील में पानी आता था, जिन पर बने एनिकटों के कारण आवक बहुत कम हो गई है। जमीन से जल दोहन के चलते बरसात का पानी नीचे रिस जाता है जिसके चलते दलदली जमीन लगातार कम होती जा रही है। यही कारण है कि प्रवासी पक्षियों के कारण रामसर साइट्स में शुमार इस झील में अब पक्षियों की आवक भी लगातार कम होती जा रही है। फलौदी पचपदरा का नमक खत्म हो गया वैसे ही कभी सांभर के नमक को भी लोग तरस जाएंगे। तीस साल पहले साल्ट् में एक हजार से ज्यादा लोग काम करते थे लेकिन अब प्रबंधन की नीतियों के कारण कर्मचारियों की संख्या घटती चली गई है। वे चुनावी मुद्दे के रूप में इसके पिछड़ने के लिए वे राजनेताओं को कठघरे में खड़ा करते हुए कहते हैं कि ज्यादातर प्रभावशाली लोग ही नहीं चाहते कि सांभर साल्ट्स सही प्रकार से चले। सांभर झील क्षेत्र में लगने वाले सौर उर्जा संयंत्र की स्थापना को चुनावी मुद्दा बनाए जाने की बात कहते हैं। हालांकि उनका यह भी कहना है कि यह मुद्दा राजनीति की भेंट चढ़ गया अन्यथा यह सौर उर्जा संयंत्र क्षेत्र के लिए संजीवनी साबित होता। उनके लिए सांभर को जिला घोषित करवाना भी एक प्राथमिकता है। पर फिर वे कहते हैं कि सबसे बड़ा मुद्दा तो पानी है। पीने का पानी मिले तो सब बात सही। वहीं प्रिंटिंग प्रेस व्यवसायी विनोद कुमार शर्मा चुनाव का मुद्दा पूछते ही कहते हैं रोजगार। सारे युवा बाहर जा रहे हैं। हमें तो रोजगार चाहिए। पर्यटन विकास की बड़ी बड़ी बातें हुई थीं लेकिन पर्यटन विकास का कोई फायदा स्थानीय लोगों को तो होता नजर नहीं आ रहा। थोड़ा बहुत शूटिंग और कभी कभार विदेश पर्यटकों के दल आ जाते हैं पर उससे स्थायी रोजगार नहीं पनप रहा। ना उतनी होटलें बनी हैं ना ही उतनी टैक्सी की जरूरत बढ़ी है। वहीं रामेश्वरी देवी कहती हैं सांभर क्षेत्र में नमक जमाने की इजाजत मिलनी चाहिये जिससे लोगो को रोजगार मिल सके, और सांभर में चिकित्सा व्यवस्था में सुधार होना चाहिए। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द में सर्जन व अन्या चिकित्सक नहीं होने के हर छोटे मोटे मामले में मरीज को जयपुर रैफर कर दिया जाता है। तो विमला देवी का कहना है कि सांभर में पानी की सही व्यवस्था होनी चाहिये। तीन से पांच दिन के अन्तराल में पानी की आपूर्ति हो रही है। रोजगार तो बड़ा मुद्दा है।
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