आसलपुर में खनन पट्टों की नीलामी को लेकर फिर खड़ा हुआ विवाद, एमएसटीसी नीलामी पोर्टल पर हुई तकनीकी खामी से पात्र आवेदक मौके से वंचित, अरावली स्टोन क्रशर ने की पुनर्नीलामी की मांग
जयपुर। आसलपुर में खनन पट्टों की नीलामी को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। अरावली स्टोन क्रशर के पार्टनर सुरेंद्र सिंह जाखड़ ने एमएसटीसी नीलामी पोर्टल पर हुई तकनीकी गड़बड़ी के चलते बोली प्रक्रिया में आई बाधाओं को लेकर गंभीर आपत्ति जताई है। उन्होंने इस संबंध में खनन विभाग, निदेशक एवं संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखकर बोली प्रक्रिया को रद्द करने और दोबारा नीलामी आयोजित करने की मांग की है। सुरेंद्र सिंह जाखड़ ने बताया कि उन्होंने एमएसटीसी पंजीकरण संख्या 563591 के तहत प्लॉट संख्या 23 आसलपुर जोबनेर, जयपुर के लिए नीलामी में भाग लिया था। लेकिन जब बोली प्रक्रिया चल रही थी, उसी दौरान पोर्टल पर गंभीर तकनीकी गड़बड़ी आ गई, जिससे उनकी अंतिम बोली नीलामी विंडो पर पोस्ट नहीं हो सकी। इससे उन्हें आर्थिक नुकसान हुआ और उनके बोली लगाने के अधिकार का हनन भी हुआ। जाखड़ ने दावा किया कि जब उन्होंने इस समस्या को लेकर एमएसटीसी के अधिकारी पंकज कुमार चिपमा से संपर्क करने की कोशिश की तो उस समय उनका फोन नहीं उठाया गया। इसके कारण उन्हें अपनी समस्या दर्ज कराने का भी अवसर नहीं मिला।
खनन विभाग से की पुनर्नीलामी की मांग, दर्ज करवाई शिकायत
अरावली स्टोन क्रशर के पार्टनर ने खनन विभाग से अनुरोध किया है कि इस तकनीकी खामी को गंभीरता से लिया जाए और नीलामी प्रक्रिया को रद्द करके दोबारा निष्पक्ष एवं पारदर्शी नीलामी करवाई जाए। उनका कहना है कि इस तरह की तकनीकी गड़बडिय़ां अन्य बोलीदाताओं को भी प्रभावित कर सकती हैं और इससे सरकारी राजस्व को भी नुकसान हो सकता है। इस बाबत संबंधित पक्ष द्वारा शिकायत भी दर्ज करवाई गई है लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। बोली प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि ऐसी तकनीकी खामियों को ठीक किया जाए और प्रभावित बोलीदाताओं को न्याय दिलाने के लिए उचित कदम उठाए जाएं।
अब नीलामी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर उठने लगे सवाल
इस पूरे मामले ने ऑनलाइन नीलामी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि बोलीदाता तकनीकी खामी के कारण अपनी बोली नहीं लगा सकते या उनकी बोली समय पर दर्ज नहीं होती तो इससे पूरी प्रक्रिया संदेह के घेरे में आ जाती है। इस मामले में अन्य बोलीदाताओं को भी इसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ा हो सकता है, जिससे उनकी बोली लगाने की निष्पक्षता प्रभावित हुई होगी। अब देखना होगा कि खनन विभाग और संबंधित अधिकारी इस शिकायत पर क्या कदम उठाते हैं। यदि विभाग ने इस समस्या की गहन जांच नहीं की, तो यह अन्य बोलीदाताओं के लिए भी एक मिसाल बन सकता है, जिससे भविष्य में खनिज नीलामी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है।