‘हमारे पास शिक्षा बोर्ड और मदरसा बोर्ड की मान्यता है। जमीन के कागज भी हैं, फिर भी कार्रवाई की गई। प्रशासन ने हमारी एक नहीं सुनी। यही कहते रहे कि मदरसा तो सील होकर रहेगा, ऊपर से ऑर्डर है। फिर मदरसा सील कर दिया। यहां 70 से 80 बच्चे पढ़ते थे। सबकी पढ़ाई बंद हो गई।’ उत्तराखंड के देहरादून में दारुल उलूम मुहमदिया मदरसा के प्रबंधक मोहम्मद मोहतशिम समझ नहीं पा रहे कि आखिर ये सब क्यों हुआ। मदरसे पर कार्रवाई का सामना करने वाले मोहतशिम अकेले नहीं हैं। उत्तराखंड में फरवरी-मार्च से ही कथित 'अवैध' मदरसों को सील किया जा रहा है। राज्य सरकार ने मई 2025 तक 170 से ज्यादा मदरसे बंद करने का दावा किया है। सरकार और मदरसा बोर्ड का कहना है कि कार्रवाई सिर्फ अवैध और अनरजिस्टर्ड मदरसों के खिलाफ हुई है। किसी कम्युनिटी को टारगेट नहीं किया जा रहा है। हालांकि, मुस्लिम संगठनों का कहना है कि हमारी कम्युनिटी को जानबूझकर टारगेट किया जा रहा है। सील किए गए मदरसों में हल्द्वानी का इहया उल उलूम भी शामिल है। हम यहां के कोषाध्यक्ष मोहम्मद शोएब से मिले। उनके पास सोसाइटी एक्ट और वक्फ बोर्ड में रजिस्ट्रेशन के कागज भी हैं। शोएब का आरोप है कि उन्हें कभी बताया ही नहीं गया कि उत्तराखंड मदरसा बोर्ड में भी रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। वे बताते हैं, 'कार्रवाई के दिन हल्द्वानी सिटी मजिस्ट्रेट और SHO बनभूलपुरा टीम के साथ मदरसा आए थे। उनके साथ पुलिस फोर्स भी थी। इससे पहले हमें न कोई नोटिस मिला, न कोई सर्वे करने आया। इसलिए हमें कोई जानकारी नहीं मिली। उन्होंने सीधे यही बताया कि अवैध मदरसे की लिस्ट में आपका नाम भी है, मदरसा बोर्ड में आपका मदरसा रजिस्टर्ड नहीं है और सील कर दिया।' 'हमने मदरसा सोसाइटी एक्ट और वक्फ बोर्ड से रजिस्ट्रेशन के कागज भी दिखाए। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं था।'
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