चुराचांदपुर जाना बॉर्डर पार करने जैसा, कुकी लहरा रहे बंदूकें:मैतेई घरों में लूट-आगजनी, मंदिर में तोड़फोड़ कर लिखा ‘किल मैतेई’
60 लोग मारे गए, करीब 250 घायल, 1700 घर-धार्मिक स्थल जला दिए गए और 23 हजार लोग जान बचाने के लिए कैंपों में रह रहे हैं। इस आंकड़े में ज्यादातर हिस्सेदारी इंफाल में हुए दंगों की है, यहां मैतेई समुदाय रहता है। दंगाई भीड़ भी इन्हीं की थी और निशाने पर कुकी थे।
यहां से 60 किलोमीटर दूर कुकी-नगा जनजातियों की दुनिया है, इसका नाम चुराचांदपुर जिला है। 3 मई को हिंसा यहीं से शुरू हुई। यहां रास्तों पर हथियारबंद लोग हैं, जली हुई गाड़ियां हैं, मौतों-नुकसान की गिनती ही नहीं। चुराचांदपुर से पहले खोपी गांव की एक BSF पोस्ट है, जो अब इंटरनेशनल बॉर्डर जैसी है। यहां से आगे दंगाई भीड़ कुकी लोगों की है और निशाने पर मैतेई हैं।
मणिपुर में कुल 16 जिले हैं, सबसे ज्यादा हिंसा इंफाल, चुराचांदपुर और बिष्णुपुर में हुई है। बिष्णुपुर इंफाल से 26 किमी और चुराचांदपुर करीब 60 किमी दूर है।
इंफाल वैली और पहाड़ी इलाके के बीच बना बॉर्डर
मणिपुर हिंसा का एपिसेंटर चुराचांदपुर जिला है। इंफाल भले ही अब शांत है और 11 जिलों में कर्फ्यू में ढील दी जा चुकी है, लेकिन चुराचांदपुर के आसपास हिंसा, बवाल, आगजनी और मारकाट की खबरें अब भी आ रही हैं।
चुराचांदपुर जनजातीय समुदाय कुकी का इलाका है। 8 मई की सुबह हम इंफाल से चुराचांदपुर के लिए निकले थे। शहर के हालात कुछ बेहतर नजर आए, पर सबसे बड़ी दिक्कत थी कि हमारा ड्राइवर मैतेई समुदाय से था। चुराचांदपुर किसी मैतेई के लिए फिलहाल दुनिया की सबसे असुरक्षित जगह है।
सड़कों पर थोड़ी-बहुत गाड़ियों की आवाजाही और हलचल दिख रही थी। सड़कों पर बिखरी जली हुई गाड़ियों को हटाया जा रहा था। कुछ दुकानें खुली थीं। हालांकि आर्मी और केंद्रीय सुरक्षाबलों का फ्लैग मार्च जारी है। जगह-जगह बैरिकेडिंग है।
इंफाल से निकलकर करीब 26 किमी चले, तो सबसे पहले बिष्णुपुर पड़ा। यहीं से कुकी बहुल इलाका शुरू हुआ। इंफाल घाटी और पहाड़ों के बीच कई ऐसे गांव हैं, जिनमें मैतेई और कुकी दोनों समुदाय की आबादी रहती थी। चुराचांदपुर जिले में पड़ने वाला थोरबुंग गांव इस हिंसा के बाद अब एक घोस्ट विलेज बन चुका है। गांव में मौजूद घरों को पूरी तरह जला दिया गया है। सिर्फ जलते घर और धुंआ ही नजर आ रहा है।
थोरबुंग से आगे बढ़े तो चुराचांदपुर जिला शुरू हो गया। यहां तुईबोंग के हाओलाई खोपी गांव में BSF कैंप के पास हमें जवानों ने रोक लिया। उन्होंने बताया कि आगे जाना खतरे से खाली नहीं है। हमारे ड्राइवर ने आगे जाने से इनकार कर दिया, वो गाड़ी मोड़कर वापस इंफाल चला गया। यहां मौजूद BSF के एक अधिकारी ने बताया कि इस चौकी की हालत अब इंटरनेशनल बॉर्डर जैसी है। यहां से इंफाल की तरफ कुकी नहीं जा सकते और चुराचांदपुर की तरफ मैतेई।
3 मई को यहीं आमने-सामने आए थे दोनों समुदाय
3 मई को इसी चेक पोस्ट के एक तरफ मैतेई और दूसरी तरफ कुकी समुदाय की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। मणिपुर पुलिस के बड़े अधिकारी यहां पहुंचे थे, लेकिन फिर भी हालात काबू में नहीं आए। BSF के अधिकारी बताते हैं कि पुलिस चाहती तो हालात संभाले जा सकते थे, लेकिन उन्होंने सही समय पर सख्ती नहीं दिखाई और हिंसा भड़क गई।
BSF कैंप से लगा हाओलाई खोपी कुकी बहुल गांव है। हम BSF कैंप से पैदल आगे चल दिए। कुछ दूरी पर 3-4 लड़के सड़क पर गैस सिलेंडर लुढ़काते हुए ला रहे थे। लोगों ने पूछा कि सिलेंडर कहां से ला रहे हो? जवाब न मिलने पर उन्हें भनक लग गई कि ये लड़के किसी मैतेई घर से सिलेंडर चोरी करके ला रहे हैं।
कुकी लोगों ने अपने ही समुदाय के इन लड़कों को पीटना शुरू कर दिया और मारते हुए गांव में ले गए। मौके पर मौजूद एक महिला ने बताया, ‘ऐसे माहौल में कुछ लड़के चोरी-लूटपाट कर रहे हैं। इससे पूरे समुदाय की बदनामी हो रही है। हम चोरी-लूटपाट नहीं करते हैं।’ जब लोग लड़कों को ले गए तो BSF जवान गैस सिलेंडर को कैंप में ले गए
हमने इंफाल से निकलने से पहले कुकी समुदाय के कुछ छात्र नेताओं को अपने आने की खबर दी थी। हमने उन्हें फोन किया और पूरी बात बताई। उन्होंने भरोसा दिया कि पैदल चलते रहिए, हम आपको लेने आ रहे हैं। कुछ ही देर में एक गाड़ी दिखी, जिस पर लिखा था ‘कुकी मीडिया’। एक लड़के ने पूछा ‘आर यू फ्रॉम दैनिक भास्कर?’ ग्रेसी नाम की लड़की ने हमें अपनी कार में बैठाया और हम आगे बढ़ने लगे।
कुकी लोग हथियारबंद होकर इलाके की रखवाली कर रहे
सिर्फ एक किमी आगे हथियारबंद लोग सड़क के किनारे बैठे दिखे। लकड़ियों, पत्थरों और टीन के टुकड़ों से रास्ता बंद किया हुआ था। तीन-चार लोग कंधे पर राइफल और गोलियां लटकाए थे। हमारी कार को उन्होंने गौर से देखा। कार चला रही ग्रेसी ने हाथ हिलाया और उन्होंने हमें जाने के लिए रास्ता दे दिया।
ग्रेसी ने बताया कि ‘ये कुकी समुदाय के लोग हैं और मैतेई लोगों से रक्षा के लिए खड़े हैं।’ आगे बढ़े तो हमें इस तरह के राइफल लटकाए हुए कई लोग दिखते रहे। हम ग्रेसी के साथ थे, इसलिए किसी ने नहीं रोका।
चुराचांदपुर जिले में हमें एंट्री पॉइंट पर एक एंग्लो-कुकी वॉर गेट दिखा। ग्रेसी ने बताया कि ब्रिटिश आर्मी और कुकी समुदाय के बीच 1917 से 1919 तक लड़ाई चली थी। उसी की याद में ये गेट बना था। ये गेट कुकी समुदाय के लिए गर्व का प्रतीक है
कुकी-एंग्लो गेट पर मैतेई लोगों ने आग लगाई फिर भड़की हिंसा
ग्रेसी के मुताबिक, ‘3 मई की दोपहर, चुराचांदपुर शहर के पीस ग्राउंड में जनजातीय समुदायों की रैली थी। मणिपुर के अलग-अलग पहाड़ी इलाकों से कुकी, नगा समेत कई सारे जनजातीय समुदाय के लोग आए थे, हजारों की भीड़ थी। लोगों ने यहां इकट्ठे होकर इसी कुकी-एंग्लो गेट की तरफ मार्च शुरू किया।’
‘इसी दौरान कुछ लोग इंफाल की तरफ से आए और उन्होंने कुकी एंग्लो गेट पर आग लगा दी। एंग्लो-कुकी वॉर गेट पर आग लगने की खबर के बाद कुकी भी भड़क गए। उन्होंने इसे अपने स्वाभिमान पर चोट की तरह लिया और बदले में मैतेई समुदाय के घरों पर हमले शुरू हो गए। दूसरी तरफ इंफाल में कुकी घरों पर हमला और आगजनी शुरू हो गई।’
चुराचांदपुर में कुकी समुदाय की आबादी ज्यादा है, मैतेई समुदाय अल्पसंख्यक है। स्थानीय बताते हैं कि दोनों के बीच 90-10 का रेश्यो है। इंफाल में भले ही अब शांति है, लेकिन चुराचांदपुर में हालात तनावपूर्ण हैं, सड़कों पर आगजनी दिख रही थी। सेना और केंद्रीय सुरक्षाबलों के सैकड़ों जवान फ्लैग मार्च कर रहे हैं। सड़कों पर जला हुआ मलबा बिखरा है।
इंफाल की तरह यहां भी लोगों ने घरों पर पोस्टर लगाए
इंफाल के मैतेई लोगों ने अपने समुदाय को दंगाई भीड़ से बचाने के लिए घरों पर पोस्टर लगाए हुए थे। चुराचांदपुर में भी दुकानों और घरों के बाहर ‘EIMI DWAR’, ‘EIMI HOME’ लिखे पोस्टर लगे हैं। ये कुकी भाषा है Ei का मतलब है हमारे, Mi का मतलब है लोग, द्वार का मतलब दुकान।
कुकी लोगों ने दंगाइयों से दुकानों को बचाने के लिए ‘हमारे लोगों की दुकान’ लिखा हुआ है। ये कुकी मॉब से बचने के लिए ही है।
चुराचांदपुर का कुमुजांबा मैतेई मोहल्ला बना घोस्ट कॉलोनी
चुराचांदपुर सिटी में मैतेई समुदाय के 3-4 मोहल्ले हैं। शहर का सबसे बड़ा मैतेई मोहल्ला कुमुजांबा अब राख हो चुका है। यहां मैतेई समुदाय के 100 से ज्यादा घर थे, जिन्हें लूटने के बाद जला दिया गया। करोड़ों की कीमत वाले 4-5 मंजिला मकान अब खंडहर हो चुके हैं।
हम यहां पहुंचे तो कुकी समुदाय की भीड़ इकट्ठी हो गई, उन्होंने हमें इन घरों के फोटो लेने से मना किया। इसी दौरान कुछ बच्चे इन घरों से सामान चुराते दिखे। मना करने के बावजूद हम इन घरों के अंदर गए। इनमें तहखाने भी बने हुए थे। कुकी लोगों का आरोप है कि मैतेई लोगों ने इन्हीं तहखानों में हथियार छुपाकर रखे थे।
जले हुए घरों से कुछ ही दूर मैतेई समुदाय का एक मंदिर भी था। मंदिर को बाहर से तोड़-फोड़ दिया गया था। हमें इसके अंदर नहीं घुसने दिया गया। मंदिर की दीवार पर लिखा हुआ है ‘KILL MAITEI’। इस इलाके में अब कोई मैतेई परिवार नहीं बचा है। वे चुराचांदपुर के शरणार्थी कैंप में हैं या फिर इंफाल में अपने रिश्तेदारों के पास भाग गए हैं।
3 मई को पुलिस गोलीबारी में मारी गई स्टूडेंट अब शहीद
कुकी समुदाय से छात्र हमें शहर में उस जगह ले गए, जहां कथित तौर पर प्रदर्शन के दौरान 34 साल की एक कुकी छात्रा निहांग होईचिंग की मौत पुलिस की गोली से हो गई थी। जिन तीन छात्रों की मौत हुई है, निहांग होईचिंग उनमें से एक हैं। यहां छात्रा का पोस्टर लगा है।
प्रशासन के मुताबिक चुराचांदपुर जिले से करीब 5 हजार मैतेई परिवारों को रेस्क्यू कर लिया गया है। इस समुदाय के लिए इलाके में सरकार ने 4 शरणार्थी कैंप बनाए हैं। उन्हें रेस्क्यू कर इंफाल लाया जा रहा है।
चुराचांदपुर जिले में पहुंचते ही हमें एक कुकी कैंप ले जाया गया। ये कैंप कुकी समुदाय के ज्यादातर बड़े नेताओं का ठिकाना है। यहां हमें डीजे होकिप मिले। डीजे कुकी स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन के महासचिव हैं। उनके साथ हम उस पीस ग्राउंड पर गए, जहां 3 मई को जनजातीय समुदायों की रैली हुई थी। पढ़िए कुकी छात्र नेता से बातचीत…
सवाल: मणिपुर में ये बवाल क्यों हो रहा है?
डीजे होकिप: जनजातियों के साथ भेदभाव हो रहा है। पहाड़ों और घाटी के बीच विकास में फर्क साफ नजर आएगा। कुकी लोग इंफाल में सुरक्षित महसूस नहीं करते। ये जमीन जनजातीय समुदायों की है, जमीन से ही हमारी पहचान है।
मैतेई हम पर आरोप लगाते हैं कि हम म्यांमार से आए हैं, हम विदेशी हैं। हम उन्हें बताना चाहते हैं कि हमने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज जॉइन की और आजादी के लिए लड़ाई लड़ी है। अब हमें किनारे क्यों किया जा रहा है।