यह है बांसवाड़ा का अनूठा मातारानी 64 जौगनिया धाम..यहां अंधे को मिलती है रोशनी; बांझ की खिलती है गोद!

महाभारतकालीन घोटीया आंबा में श्रद्धा भक्ति और आस्था का संचार,  शताब्दियों बाद जागा शक्ति का प्रताप, कई राज्यों से आते है लाखों श्रद्धालु; होती है सभी की मन्नतें पूरी


कुशलगढ़। विज्ञान भले ही अणु शक्ति से लेकर परमाणु शक्ति की क्षमता हासिल कर ले लेकिन ईश्वरीय शक्ति के आगे विज्ञान बौना ही साबित होता है। वेदों-पुराणों में आज भी ईश्वरीय शक्ति की सत्यता किसी से छिपी नहीं है। हम जब लय, सुर, ताल और सच्ची श्रद्धा भक्ति और आस्था के साथ भजनों को गाते हैं तब शरीर में नई क्रान्ति का संचार होता है। थके पैर हो या उम्र का आखिरी पड़ाव या फिर जंजीरों में जकड़ा व्यक्ति भी नाचने-झूमने लगता है।कोई वैज्ञानिक मां के गर्भ से सीख कर नहीं आता, हम महाभारत काल के अभिमन्यु नहीं है जो गर्भ में ही सब सीख ले! आविष्कार एवं किताबी ज्ञान से पढ़-लिख कर डिग्री लेकर वैज्ञानिक बनते हैं। हमारा भारत देश धर्म प्रधान देश है। देवी-देवताओं को वेदों-पुराणों, उप निशिदों, शास्त्रों में अनेक शास्त्रों को झुठलाया नहीं जा सकता है। चाहे रामायण हो या श्रीमद् भागवतगीता सभी का अपना महत्व होता है। आज हम एक ऐसे धार्मिक स्थल के बारे में पाठकों को अवगत करा रहें हैं जो  किवदंती के अनुसार महाभारत काल का है। जब पांडवों को अज्ञात वास मिला तब वे बांसवाड़ा जिले के घोटेश्वर महादेव यानी घोटिया आम्बा पर जप तप व्रत करने आए। वैसे भी बांसवाड़ा जिले को लघु काशी का नाम दिया गया है। यहां पांचों पांडवों ने भगवान भोलेनाथ की आराधना की। आज भी घोटीया आंबा में श्रद्धा भक्ति और आस्था का संचार होता है। यहां पांचों पांडवों माता कुन्ती व पांचाली की प्रतिमा है, जहां दो जल कुंड है। यहां मध्यप्रदेश, राजस्थान व गुजरात के श्रद्धालु आते हैं और श्रद्धा भक्ति और आस्था के साथ मन्नतें पूरी होने पर मन्नतें उतारते है। यहा कैला पानी का धार्मिक स्थल भी मौजूद है जहां हर साल आंखा तीज पर मेला लगता है। पांचों पांडवों ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया एवं भोलेनाथ ने मातारानी 64 जौगनिया जौगनिया में जाकर जप-तप-व्रत करने को कहा। पांचों पांडवों घोटीया आंबा से प्रस्थान कर कर्ण घाटी आएं। जब कर्ण को पांडवों के अज्ञात वास का पता चला तो कर्ण अपनी सेना को लेकर कर्ण घाटी आया पर सत्य का साथ ईश्वर देता है। कर्ण दिगभ्रमित हो उल्टे पांव चला गया। जब पांचों पाण्डव पांच डुंगरी पर निवास रत थें जो वरसाला पंचायत में आज भी पांच डुंगरिया विद्यमान है।  यहां से पांचों पाण्डव मातारानी 64 जौगनिया सरोना धाम पहुंचे जो पाटन पुलिस थाना क्षेत्र से महज तीन किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है। 
आज यह धाम भले ही सरकार व पुरा संपदा की उपेक्षा से आहत है पर श्रद्धा भक्ति और आस्था से ओत-प्रोत हो जन आस्था का केंद्र बन चुका है। यहां निस्संतानता, लकवाग्रस्त जैसें रोगों से लोगों का निजात मिलती है। हर वर्ष नवरात्रि में यहां मातारानी 64 जौगनिया के भक्तों का हुजूम उमड़ता है करीब एक करोड़ से अधिक लागत का मंदिर बन रहा है। इस मंदिर को बनाने में मुख्य योगदान पेशे से आर्युवेदिक चिकित्सा अधिकारी डॉ. मधुसूदन शर्मा अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। यहां हर रविवार को क्षेत्र के भक्त आते हैं। यहां तीन धर्मशाला भी बनी हैं। पूर्व विधायक फतेहसिंह डामोर, पूर्व मंत्री स्व. जीतमल खाट, पूर्व विधायक व संसदीय सचिव भीमा भाई डामोर, पूर्व सांसद धनसिंह रावत, महेन्द्र मालविया, वर्तमान विधायक रमिला हुरतिंग खडिय़ा व पुर्व राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भी मातारानी 64 जौगनिया सरोना धाम पर आकर मत्था टेक कर गए है। 


जोगनिया माता पर लिखी गई है चालीसा, हर साल होता है विराट कवि सम्मेलन का आयोजन
यहां जोगनिया महिमा पर एक एलबम बनाया गया है तथा जौगनिया चालीसा भी लिखी गई है। इसमें डॉ. मधुसूदन शर्मा, रिपोर्टर धर्मेन्द्र कुमार सोनी, कैमरा मैन राहुल सोनी, पायल सोनी, मगन चौहान एवं रमीला पंचाल ने किरदार निभाया है। हर साल यहां विराट कवि सम्मेलन का आयोजन भी होता है। इस धार्मिक स्थल पर कुछ लोगों ने अतिक्रमण किया है पर सरकार व प्रशासन कुंभकर्णी नींद सोए हुए हैं। देखना यह होगा कि इस पवित्र धार्मिक स्थल की सरकार व प्रशासन कब सुध लेगा? यह तो वक्त ही बताएगा।