राजस्थान का जलियांवाला बाग : नीमूचणा नरसंहार
कमांडर छाजूसिंह के आदेश पर किसानों पर बरसाई गई थी अंधाधुंध गोलियां
बानसूर (कुमार अंकेश)शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले वतन पर मिटने वालों का बाकी यही निशा होगा। आज ही के दिन यानी 14 मई 1925 को बानसूर के गांव नीमूचना में किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन पर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा अंधाधुंध फायरिंग करते हुए नरसंहार किया गया था । दरअसल वर्ष 1923-24 में अलवर रियासत के महाराजा जयसिंह ने किसानों पर दोहरा लगान लागू कर दिया। जिले के राजपूत किसानों ने अलवर सरकार के इस फैसले का प्रखर विरोध किया और ब्रिटिश सरकार से भी दोहरा लगान नहीं देने की गुहार की । सरकार की ओर से लगान पर माफी देने के लिए क्षेत्र के किसानो में सरकार के प्रति विरोध बढ़ता गया। इस पर अलवर सरकार की तरफ से 7 मई 1925 को जांच आयोग नीमूचाणा भेजा गया। आयोग ने जांच कर अलवर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौप दी। सरकार ने राजपूत किसानों के आंदोलन को राहत देने के बजाय आन्दोलन को शक्ति से कुचलने का निश्चय किया। तो वही दूसरी ओर किसानों ने बानसूर के नीमूचाणा में एकत्रित होकर सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। अनवर सरकार ने इस किसान आंदोलन को कुचलने के लिए एक सैनिक बल गांव नीमूचाणा भेजा जिसने 14 मई 1925 को नीमूचाणा को चारों से घेर लिया और शाम करीब सवा पांच बजे कमांडर छाजूसिंह के आदेश पर राजपूत किसानों पर मशीनगनों से हमला कर दिया । सैनिकों द्वारा पूरे गांव में आग लगा दी गई। हमले में करीब 250 राजपूत किसान मारे गए और 100 से अधिक किसान घायल हो गए।आग से ग्रामीणों की सम्पत्ति जल कर राख हो गई। इस आगजनी में करीब 150 घर जल गए व 60 से अधिक मवेशी मर गए। अंग्रेजी सेना द्वारा 40 राजपूत किसानों को बंदी बना लिया गया। नीमूचाणा कांड इतना बर्बर एवं नृशंस था की दिल्ली के समाचार पत्रों ने नीमूचाणा हत्याकांड को रियासत में जलियांवाला बाग हत्याकांड के समक्ष रखा। अजमेर के तरुण राजस्थान एवं कानपुर के प्रताप समाचार पत्र ने नीमूचाणा हत्याकांड की सूचना दिल्ली तक पहुंचाई। तो ब्रिटिश हुकुमनारो पर दबाव पड़ा। अंग्रेज अधिकारियों ने अलवर के महाराजा को नीमूचाणा में किसानों से बातचीत व शांति बनाए जाने की बात कही । तब जाकर राजा ने किसानों से समझौता किया और लगान कर हटाए गए और बेगा प्रथा बंद की गई। ग्रामीणों ने बताया कि समझौते के बाद अलवर महाराजा ने दो ऊंट गाडियों में सोना व चांदी भरकर भेजा और ग्रामीणों के गोली कांड से हुए नुकसान का मुआवजा देने को कहा।
महात्मा गांधी ने कहा दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड
राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने नीमूचाणा नरसंहार को दूसरे जलियांवाला बाग हत्याकांड की संज्ञा देते हुए 1926 में कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन में गांधी ने अपनी कलम से नीमूचाणा नरसंहार पर निंदा प्रस्ताव प्रस्तुत किया। तो वही लोहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने बम्बई में आयोजित मारवाड़ी सभा में नीमूचाणा कांड की त्रीव भर्त्सना की। इस नरसंहार के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी पैदल चलकर नीमूचाणा पहुंचे जहां उन्होंने किसानों से मुलाकात कर घटना का जायजा लिया।
हवेलियों पर गोलियों के निशान आज भी देते हैं घटना की गवाही
नीमूचाना में वीरान पड़ी पुरानी हवेलियों मे लगे गोलियों के निशान आज भी नींमूचना नरसंहार व भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की गवाही देते हैं।
बदहाली की गवाही दे रहा नीमूचाणा
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में दूसरे जलियांवाला बाग के नाम से विख्यात नीमूचाणा नरसंहार भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान रखता है लेकिन इसके इतर आज सरकारों की उदासीनता स्पष्ट दिखाई दे रही है जिस प्रकार से जलियांवाला बाग में शहीद स्मारक बना हुआ है ठीक उसी प्रकार से नीमूचाना में भी शहीद स्मारक का निर्माण करवाया जा सकता था लेकिन सरकारों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। नीमूचाना में विरान पड़ी ऐतिहासिक हवेलियां व मां भारती के लिए प्राणों को न्यौछावर करने वाले अमर शहीदों की यादों की निशानियां की अनदेखी आज स्वयं अपनी बदहाली की गवाही दे रही है। आज स्थानीय विधायक कैबिनेट मंत्री है और यही के लाल आरटीडीसी के चेयरमैन के नाते दर्जा प्राप्त कैबिनेट मंत्री है इससे पूर्व स्थानीय सांसद भी केंद्र सरकार में मंत्री रहे हैं। लेकिन इन सबने इस राष्ट्रीय विरासत को संरक्षित और विकसित करने के लिए क्या प्रयास किए यह भी विचारणीय है।