डगर कठिन थी, त्रिभुवन की  सूझबूझ से मिली बड़ी सफलता

पृथ्वीराज नगर में जेडीए के अतिक्रमण हटाने के मिशन को ' ठंडे दिमाग, मजबूत जिगर ' ने आसान बनाया 

जयपुर। अठारह जून की वह सुबह जयपुर विकास प्राधिकरण ही नहीं बल्कि पुलिस और प्रशासन के लिए भी बहुत अंर्तद्वंद भरी थी। राजस्थान उच्च न्यायालय ने न्यू सांगानेर रोड से वंदे मातरम् रोड तक स्थाई अतिक्रमणों को हटा कर सड़क को 100 फीट चौड़ा करने का आदेश दिया था। इस क्षेत्र में यातायात की सुगमता के लिए यह अनिवार्य भी था। लेकिन सामने करीब ढ़ाई सौ मकान हटाने का लक्ष्य था और यह एक दिन का अभियान नहीं था। साथ ही यह राज्य के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का निर्वाचन क्षेत्र था। वैसे यही बात पुलिस, प्रशासन और जेडीए के पक्ष में थी कि मुख्यमंत्री की दृढ़ इच्छा शक्ति थी कि अतिक्रमण हटाकर राजधानी जयपुर के इस बाहरी क्षेत्र में ' नगर नियोजन ' की एक सुंदर तस्वीर प्रस्तुत की जाए। भविष्य के जयपुर के लिए कुछ कठिन फैसले लिए जाएं। लेकिन उन सैंकड़ों परिवारों का आक्रोश भी एक बड़ा प्रश्न था जो अपने आशियाना बचाने के लिए सड़क पर उतर एक जटिल चुनौती खड़ी करने को तत्पर थे। बुजुर्ग और महिलाएं भी मोर्चा लेने को खड़ी थीं। 

ऐसे नाजुक हालात के बीच जेडीए के मुख्य नियंत्रक प्रवर्तन
महेन्द्र कुमार शर्मा निरंतर पल -पल की स्थितियों को पिछले दिनों से भांप रहे थे। यह टास्क उन्हीं की टीम को पूरा करना था। लेकिन शर्मा को भरोसा था कि पिछले कुछ महीनों में पृथ्वीराज नगर, मुहाना, डिग्गी रोड, रिंग रोड, महेन्द्रा सेज आदि इलाकों से करोड़ों रूपये की सरकारी जमीन शांतिपूर्वक अतिक्रमण से मुक्त कराने वाले उनके कर्तव्यपरायण अधिकारी और कर्मचारी इस कठिन चुनौती को भी सहजता से पूरा कर लेंगे। लेकिन विरोध की आशंकाएं तीव्र थीं और घनी आबादी में अतिक्रमण हटाने के दौरान कोई अनहोनी ना हो इसके लिए जेडीए का पूरा अमला लगातार समझाइश में जुटा था और इसका असर भी हो रहा था लेकिन जो आशंकाएं थीं, वह भी निर्मूल नहीं थी। जेडीए के मुख्य नियंत्रक प्रवर्तन महेन्द्र कुमार शर्मा मौके पर डटकर बारीकी से कार्ययोजना बनाने लगे और उन्होंने इस मिशन का सबसे संवेदनशील जिम्मा उस अधिकारी को सौंपने का निर्णय लिया जिसे ' ठंडे दिमाग और मजबूत जिगर ' के लिए जाना जाता है, वह पुलिस अधिकारी थे जेडीए के प्रवर्तन अधिकारी त्रिभुवन वशिष्ठ।


 जयपुर विकास प्राधिकरण जोन -11 के प्रवर्तन अधिकारी त्रिभुवन वशिष्ठ इस क्षेत्र से 
अतिक्रमण हटाने के अनुभवी होने के साथ तनाव के चरम माहौल में भी शांति से काम अंजाम देने के लिए माहिर हैं। उन्होंने बगरू, अजमेर रोड, मुहाना, सांगानेर आदि क्षेत्रों में कई कठिन मोर्चों पर जनता के उग्र तेवरों को सूझबूझ के साथ थामा था और जेडीए के अतिक्रमण हटाने में जुटे दस्ते के लिए भी त्रिभुवन की मौजूदगी एक भरोसे का पर्याय बन गयी है। सन् 2017 में राष्ट्रपति पुरस्कार सहित अपने सेवा -काल में पुलिस के उत्कृष्ट सेवा, उत्तम सेवा, अति उत्तम सेवा पदक सहित नब्बे नकद अवार्ड से सम्मानित त्रिभुवन वशिष्ठ को 
उनकी निष्पक्ष, निर्भीक, निर्वैर छवि के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय में तैनाती के समय से ही ' सिंघम ' की जन उपमा भी मिली हुई है। 

यहाँ वे लंबे समय तक गुप्तचर शाखा के अंतर्गत विश्वविद्यालय का प्रभार देखते थे। जहाँ उन्होंने अपने अनुसंधान, सूचना तंत्र और सूझबूझ के बल पर ना केवल अनेक छात्रसंघ चुनाव शांतिपूर्वक सम्पन्न कराये बल्कि विभिन्न छात्र, युवा, कर्मचारी आंदोलनों की नब्ज के तापमान को भांप पुलिस तंत्र को अग्रणी इनपुट उपलब्ध कराया। उन्हें आंदोलनों के दौरान पुलिस -प्रशासन से समन्वय बनाने में भी महारत हासिल है। 

त्रिभुवन वशिष्ठ ने जोन 11 में बगरू कलां में 22 बीघा निजी खातेदारी कृषि भूमि पर जेडीए की बिना स्वीकृति और अनुमोदन तथा बिना भू -रूपांतरण के बसायी जा रही अवैध कॉलोनी को ' पीला पंजा ' चलवाकर ध्वस्त किया।
 यही कार्य उन्होंने सारंगपुरा में 8 बीघा और टीलावास में 10 बीघा निजी खातेदारी कृषि भूमि के प्रकरणों में किया। रामचंद्र पुरा और टीलावाला में कुल दस बीघा भूमि पर से अवैध कॉलोनी हटाने के उनके साहसिक फैसले की सभी ने सराहना की। उन्हें जोन -9 में ग्राम बिधानी -जीरोता में ऐसी ही चुनौती से निपटने के लिए भेजा गया। जहाँ जेडीए की सरकारी भूमि पर कब्जा कर अवैध निर्माण भूमाफिया ने करा लिया था। इसे ध्वस्त करने की चुनौती को उन्होंने सफलतापूर्वक अंजाम दिया। त्रिभुवन वशिष्ठ ने गोनेर कानड़वास जो कि जोन 9 का हिस्सा है, वहाँ भी 5 बीघा भूमि पर अवैध कॉलोनी निर्माण ध्वस्त कराया और ' जानकी नगर ' के नाम से बसायी जा रही


अवैध कॉलोनी समतल कराकर 
डेढ़ बीघा भूमि जेडीए के सुपुर्द करायी। जोन ग्यारह के पीआरएन में त्रिभुवन वशिष्ठ ने रामविहार आदि इलाकों में भूमाफिया और अवैध निर्माण के खिलाफ जमकर कार्रवाई की है। जिससे आम जनता में जेडीए को सराहना मिली है। 

लंबे समय तक उग्र युवा और छात्र आंदोलनों के बीच खड़े रहकर कानून एवं व्यवस्था की पालना और समन्वय स्थापित करने में दक्ष त्रिभुवन वशिष्ठ को पृथ्वीराज नगर के इस नाजुक अभियान में अग्रणी जिम्मा सौंपा गया। जयपुर के आराध्य गोविंद देव जी के अनन्य भक्त त्रिभुवन वशिष्ठ ने अपने कर्तव्य पथ को विवेक और विनम्रता से 
निभाते हुए आक्रोशित लोगों से बातचीत की। उनकी निराशा को समझते हुए उन्हें कानूनी पहलुओं का स्मरण कराया और उपस्थित अधिकारियों से उनकी बातचीत का निरंतर मार्ग भी बनाया। जब जनता को लगा कि जेडीए की यह टीम पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से अपना काम कर रही है तो लोगों का विरोध थमता गया और सहयोग का वातावरण बनता गया। अठारह जून की सुबह तनाव के जो बादल थे, वे प्रयासों से छंट गये थे और अगले तीन दिन में ढ़ाई सौ से ज्यादा अतिक्रमण हटाने का काम जिस सहजता, शांति और सूझबूझ से चला। उसने सरकार में बैठे आला अफसरों, मीडिया और जनप्रतिनिधियों को दो दशक से अधिक पुराने ' ऑपरेशन पिंक ' की याद दिला दी। जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जयपुर शहर में बाजारों से बरामदे खाली कराये गये थे। 

'ऑपरेशन पिंक ' की तर्ज पर न्यू सांगानेर रोड पर मेट्रो स्टेशन से सांगानेर तक छह सौ दुकानों और अन्य संपत्ति पर से अतिक्रमण हटाने का 26 जून से शुरू होने वाला अतिक्रमण हटाने का दूसरा चरण भी पुलिस, प्रशासन और जेडीए के लिए एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है। इस अभियान को अंजाम देने के प्रमुख अंग त्रिभुवन वशिष्ठ का मानना है कि निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा का तत्व उन्हें कार्य करने की प्रेरणा देता है। ऐसे अभियान से कुछ लोगों को परेशानी होती है लेकिन लाखों लोगों को इसका सदा के लिए लाभ मिलता है। 
यही समझाने की वे जनता को चेष्टा करते हैं कि जयपुर महानगर के बहुआयामी विकास के लिए सबका सहयोग और विश्वास ही उनकी कार्ययोजना का ध्येय है।