स्नातक सहित विशेष शिक्षा में दो वर्षीय डिप्लोमा उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को बड़ी राहत, आरसीआई व सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी गाइडलाइन्स के अनुसार सरकार को पुन: तय करने होगी विशेष शिक्षकों की योग्यता
जोधपुर/जयपुर। स्नातक के साथ विशेष शिक्षा में डिप्लोमाधारी अभ्यर्थियों के लिए राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर से राहत देने वाला निर्णय आया है। उक्त मामले में व्यापक सुनवाई हुई थी और अब राजा राम व अन्य बनाम राजस्थान सरकार सहित करीब दो दर्जन मामलों में हाईकोर्ट का निर्णय सामने आया है। मामला तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती लेवल-2 (विशेष शिक्षा) से जुड़ा हुआ है। निदेशालय ने उक्त योग्यताधारी अभ्यर्थियों को इस भर्ती में शामिल होने से वंचित कर दिया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट सुशील बिश्नोई ने कोर्ट को बताया कि स्नातक डिग्री सहित विशेष शिक्षा में प्रारम्भिक शिक्षा का दो वर्षीय डिप्लोमा उत्तीर्ण अभ्यर्थी रीट पात्रता शर्तों के मुताबिक तथा राष्ट्रीय पुनर्वास परिषद/आरसीआई गाइडलाइन्स के अनुसार तृतीय श्रेणी अध्यापक लेवल 2 (विशेष शिक्षक) के पद के लिए पात्र हैं। लेकिन, निदेशालय व भर्ती एजेंसी ने मनमाने तरीके से भर्ती की विज्ञप्ति में उन्हें अपात्र करार दिया है। मामले की व्यापक बहस के दौरान एडवोकेट बिश्नोई ने दलील दी कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने भी उक्त डिप्लोमा को समकक्षता दी हुई है। उक्त के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी प्रदेश सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों को आरसीआई की सिफारिशों को अपनाने बाबत आदेशित किया हुआ है तथा स्पष्ट किया हुआ है कि इस संबंध में जारी आरसीआई की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देश समझा जाए। एडवोकेट बिश्नोई ने दलील दी कि उक्त योग्यताधारी अभ्यर्थी पात्र थे तभी तो इन्हें पूर्व की रीट भर्ती 2016, 2018 तथा 2021 की अध्यापक भर्ती में शामिल किया गया था। सरकार की तरफ से प्रकरण के संबंध में हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में पारित आदेशों का हवाला देकर विरोधस्वरूप अनेक न्यायिक दृष्टांत पेश किए गए जिनसे अदालत सहमत नहीं हुई।
सरकार को तीन माह के अंदर लेनसा होगा निर्णय, योग्यताधारी सभी अभ्यर्थियों पर होगा लागू
अपने निर्णय में जस्टिस अरुण मोंगा ने स्पष्ट किया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2016 से विचाराधीन एक मामले में उक्त प्रकरण के संबंध में सुस्पष्ट दिशानिर्देश जारी किये हुए है। सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार द्वारा पेश स्पष्टीकरण पत्र को इंगित करते हुए जस्टिस अरुण मोंगा ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देश केवल हाईकोर्ट द्वारा ही नहीं बल्कि भर्ती की सक्षम अथॉरिटी द्वारा भी अनुपालनीय हैं। जस्टिस अरुण मोंगा ने उक्त मामले में समानांतर एकलपीठ द्वारा पूर्व में विचारित न्यायिक दृष्टांत से सहमत होते हुए स्पष्ट किया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित दिशा निर्देशों में बंधी हुई है। अत: आरसीआई के दिशा निर्देशों के अनुसार याचिकाकर्ताओं व समान योग्यता वाले अभ्यर्थियों की उक्त पद के लिए पात्रता निश्चित करने बाबत प्रशासनिक स्तर पर पुन: योग्यता निर्धारण किया जाए। सरकार को उक्त के संबंध में तीन माह के अंदर उचित तार्किक निर्णय लेना होगा जो उक्त योग्यताधारी सभी अभ्यर्थियों पर लागू होगा।