हरियाणा में ‘6 बच्चों की मौत सिर्फ झांकी’, सिलसिला रहेगा जारी..राजस्थान में भी ‘परिवहन विभाग ले रहा ‘मासूम बच्चों की सुपारी’!

 

बुरी खबर मिले तो चौंकिएगा मत.. सरकार लिख रही है हादसों की स्क्रिप्ट 

प्रदेश में तो पूरा परिवहन विभाग ही मिलीभगत में हो गया शामिल, सडक़ों पर चल रही खटारा स्कूल बसें और खतरे में डाली जा रही मासूम बच्चों की जान

हमारा समाचार के लगातार खुलासों के बाद भी अधिकारी नहीं ले रहे सुध, वैल किड्स स्कूल ने तो गायब ही कर दी खटारा बसें, अब होगा मौत का सौदा
 

जयपुर। हरियाणा में स्कूल की लापरवाही 6 बच्चों की जिंदगियां छीन ली। उनके माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल है लेकिन अगर ऐसी ही खबर आपको भी मिले तो चौंकिएगा मत, क्योंकि प्रदेश में भी ऐसे ही हादसों की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है। और यह स्क्रिप्ट और कोई नहीं बल्कि निजी स्कूल संचालक और परिवहन विभाग खुद तैयार कर रहा है। दरअसल, परिवहन विभाग इस हद तक बेपरवाह हो चुका है कि उसे मासूम जिंदगियों की बिल्कुल भी परवाह नहीं है। हमारा समाचार द्वारा लगातार खुलासा किए जाने के बाद भी खटारा बसों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है और सिर्फ बहानेबाजी की जा रही है। स्कूल प्रबंधन चंद रूपए बचाने के लिए मासूम जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहे है और परिवहन विभाग चुप्पी साधे बैठा है। दरअसल, इन बालिवाहिनियों का फिटनेस टेस्ट करवाया गया और ना टैक्स और ना ही इंश्योरेंस। ऐसे में ये बेमियादी और खटारा बालवाहिनियां सरपट दौड़ रही है।  ऐसे ही एक निकम्मे स्कूल का खुलासा हमारा दसमाचार ने किया थाप जिसका नाम है रामला का बास लालपुरा पचार स्थित वैल किड्स ऐकेडमी। इस स्कूल के प्रबंधन को महज चंद रुपयों के लिए अपने ही स्कूल के बच्चों की जान दांव पर लगाने से कोई गुरेज नहीं है। कहानी बयां करने के लिए हालांकि यह तस्वीरें ही काफी है लेकिन बात होनी चाहिए इस स्कूल प्रबंधन की घटिया सोच और इस बेपरवाही पर लगाम लगाने के जिम्मेदार अधिकारियों की। स्कूल प्रबंधन की स्थित तो यह है कि उसे बच्चों की जिंदगियों से कोई मतलब ही नहीं है। बेमियादी और खटारा वाहन जो सडक़ों पर चलने तक के उपयुक्त नहीं है, ऐसे वाहनों में स्कूल के बच्चों का परविहन किया जा रहा है। बार-बार अनफिट बाल वाहिनी और चालकों की लापरवाही से विद्यार्थियों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा है। इस बीच कई बार हादसा होने पर विद्यार्थियों की जान तक चली गई। इसके बावजूद ना तो स्कूल प्रबंधन और ना ही संबंधित विभाग कोई सबक लेने को तैयार है। स्थित यह है कि नियमों को दरकिनार करना स्कूल संचालकों का  एक फैशन बन गया है। ऐसा ही कुछ वैल किड्स द्वारा भी किया जा रहा है। यहां परिवहन विभाग के नियमों को दरकिनार कर अपनी मनमानी का रवैया अपनाया जा रहा है। बालवाहिनी के नाम पर खटारा बसें लगा रखी है जिनकी ना फिटनेस है और ना ही किसी भी नियम का पालन किया जा रहा है। 

इस फेहरिस्त में वेदांता स्कूल भी शुमार, इसकी बसों के भी है बुरे हाल
हमारा समाचार की पड़ताल में सामने आया है कि सिर्फ वैल किड्स ऐकेडमी ही नहीं बल्कि कई बड़े स्कूल भी इस बेपरवाही के चलते मासूमों की जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहे है। ऐसे ही स्कूलों में शुमार वेदांता इंटरनेशनल स्कूल। हमारा समाचार द्वारा ली गई तस्वीरों में स्पष्ट नजा आ रहा है कि इस स्कूल की बस में रजिस्ट्रेशन नंबर तक गायाब है। अब सवाल यह है कि ये नंबर क्या जानबूझकर गायब किए गए है। क्योंकि एक तरफ के नंबर गायब होना इत्तेफाक हो सकता है लेकिन दोनों तरफ के नंबर गायब होना किसी साजिश का संकेत दे रहे है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल परिवहन विभाग की कार्यशैली पर उठता है जो सबकुछ जानकर भी आंखें मूंदे बैठा है। अगर भविष्य में हरियाण जैसा कोई हादसा जयपुर में होता है तो ऐसे परिवहन अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा ही दर्ज किया जाना चाहिए। 

परिवहन विभाग की बेपरवाही ने ऐसे स्कूलों को दे रखी है शह
हालात यह है कि ऐसे स्कूलों का प्रबंधन कमाई के चक्कर में बच्चों की जान से खिलवाड़ कर रहा है। इस स्कूल के वाहनों में अग्निशमन यंत्र के साथ फस्र्ट एड किट तो दूर बल्कि देखकर ही हैरानी होती है कि आखिर यह वाहन चल कैसे रहे है? स्कूल प्रबंधक की अनदेखी से हर दिन नौनिहाल जान हथेली पर रखकर स्कूलों को सफर तय करने को मजबूर है। इस स्कूल के वाहन में खिड़कियों पर आड़ी जाली भी नहीं है। अंदर अग्निशमन यंत्र तक नहीं हैं। सीट आदि भी अच्छे हालात में नहीं हैं। वाहन देखने से ही खटारा लगता है लेकिन ना तो स्कूल प्रबंधन को इसकी फिक्र है और ना ही जिम्मेदारों को इसकी परवाह। ऐसे में कभी भी बड़ा हादसा हो सयकता है जिसकी पूरी जिम्म्ेदारी स्कूल पा्रशासन पर होगी। मासूमों की जिंदगियों से खिलवाड़ करने वाले ऐसे स्कूल प्रबध्ंान पर कड़ी कार्रवाई आवश्यक है। 

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन तो दूर, मूलभूत नियमों से भी है बेखबर
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार बसों में स्कूल का नाम, टेलीफोन नंबर लिखा हो। वाहन का कलर पीला हो, बीच में नीले रंग की पट्टी पर स्कूल का नाम हो। वाहन चालक को पांच वर्ष का अनुभव हो। सीट के नीचे बस्ते रखने की व्यवस्था हो। बस में अग्निशमन यंत्र हो। बस के दरवाजे तालेयुक्त हों। प्राथमिक उपचार के लिए फस्र्ट एड बाक्स हो। स्कूली बसों में चालक व परिचालक के साथ उनका मोबाइल नंबर लिखा हो। प्रत्येक वाहन में स्पीड गर्वनर और चालू हालत में सीसीटीवी कैमरा हो। जीपीएस सिस्टम लगा हो। छात्राओं के लिए बस में महिला सहायिका हो। इसके अलावा भी कई निर्देश परिवहन विभाग के भी हैं। जिसका उल्लंघन स्कूली वाहन संचालन में किया जा रहा है।

स्कूल प्रबंधन को किसी नियम कायदे की फिक्र नहीं, कर रहे मनमानी
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के साथ ही राज्य सरकार द्वारा भी बालवाहिनी के संबंध में कई बार दिशा निर्देश जारी किए जा चुके है। लेकिन इस स्कूल के प्रबंधन को किसी की कोई फिक्र नहीं है। ना तो स्कूल द्वारा वाहनों का फिटनेस करवाया जा रहा है और ना ही टैक्स जमा करवाया जा रहा है। दरअसल ये वाहन बेमियादी ही हो चुके है। ऐसे में इनके इंश्योरेंस की तो कोई संभावना ही नहीं है। इसके बाद भी कई विद्यालय प्रबंधन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यहां तक कि वाहन शुल्क के नाम पर बच्चों से जमकर राशि ली जाती है। लेकिन प्रबंधन एक भी सरकारी मानक पूरा नहीं करती है। इतना ही नहीं क्षमता से अधिक वाहनों पर बच्चों को चढ़ाया जाता है। बच्चों द्वारा गाड़ी में सीट नहीं मिलने की शिकायत पर प्रबंधन डांट-डपट भी करते हैं। जिसे बच्चे चुपचाप सहन कर लेते हैं।


इनका कहना है..

अभी चुनाव की व्यस्तता है और स्कूलों में भी छुट्टियां चल रही है। चुनाव के बाद कार्रवाई करेंगे। 

धर्मेन्द्र चौधरी, आरटीओ, विद्याधरनगर