हाथोज में अवैध रूप से विकसित की जा रही ‘श्री राम विहार’ आवासीय योजना में अहम खुलासे, बेशकीमती जमीन को भ्रष्ट अधिकारियों ने भूमाफिया के नाम करने की रचाी साजिश
अब इस जमीन के नियमन की भी तैयारी, एक गृह निर्माण सहकारी समिति ने बैकडेट में पट्टे काटकर जमीन के नियमन की पत्रावली चलाई, सवालों के घेरे में जयपुर विकास प्राधिकरण की लीगल शाखा
जयपुर। हाथोज में अवैध रूप से विकसित की जा रही ‘श्री राम विहार’ आवासीय योजना के नाम पर जेडीए को करीब 500 करोड़ रुपए की चपत लगा दी गई। जिस बेशकीमती और मौके की जमीन को जेडीए व्यावसायिक और आवासीय उपयोग में लेकर अरबों कमा सकता था। उसी जमीन को जेडीए के भ्रष्ट अफसरों ने मिलीभगत से भूमाफिया के नाम करने का षडयंत्र रच दिया। अहम बात यह है कि अब इस जमीन के नियमन की भी तैयारी की जा रही है, एक गृह निर्माण सहकारी समिति ने बैकडेट में पट्टे काटकर जमीन के नियमन की पत्रावली जेडीए में चला दी और अब जेडीए के ही अफसर इसकी पैरवी करने में जुटे हैं।
इस महाघोटाले के केंद्र में जेडीए की लीगल शाखा भी है। क्या जेडीए को अपने उन लीगल अफसरों पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए, जो इस पूरी कारगुजारी के जिम्मेदार रहे? जिस जमीन को 1996 में अवाप्त किया जा चुका था और वर्ष 2000 में ही जिसका अवार्ड जारी कर दिया गया था। उसी जमीन को निचली अदालत के एक निर्णय से अवाप्ति से मुक्त कर दिया गया और जेडीए की लीगल सेल सोती रही। जेडीए की लीगल सेल के अधिकारियों और प्रकरण से जुड़े वकीलों ने मामले की आगे अपील तक करने की कोशिश नहीं की।
अपने ही बुने मकडज़ाल में फंसे जेडीए अधिकारी, अब देते नहीं बन रहा जवाब
इस करीब 37 बीघा जमीन को हड़पने के लिए जो नियमन की पत्रावली चलाई गई है, उसमें 1996 में मौके पर योजना बसाना दिखाया गया है। सोसाइटी ने 1996 की तारीख में पट्टे जारी किए हैं। मजेदार बात यह है कि गूगल मैप्स में वर्ष 2023 तक मौके पर किसी आवासीय योजना का कोई अस्तित्व दिखाई नहीं दे रहा है। वहीं वर्ष 2023 और 2024 में इसी जमीन पर अस्थाई अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई जेडीए की ही प्रवर्तन शाखा ने की थी। अब इस सवाल का जवाब प्रवर्तन शाखा से लिया जाना चाहिए था कि अगर ये निजी गृह निर्माण सहकारी समिति की जमीन है तो फिर जेडीए ने कार्रवाई क्यों की।
पूरी कवायद छोड़ गई कई बड़े सवाल, सबकी आंखों में झोंकी धूल
-जेडीए ने 1996 में इस जमीन का अवाप्त किया। अब नागरिक गृह निर्माण सहकारी समिति ने मौके पर 1996 की ही बैकडेट में पट्टे जारी कर दिए और सोसाइटी बसाने का दावा किया है। सवाल ये है कि जब जेडीए ने 1996 में ही इस जमीन को अवाप्त कर वर्ष 2000 में अवार्ड भी जारी कर दिया था, तो तब से 2021 तक सोसाइटी ने इस संबंध में कोई आपत्ति जेडीए में दर्ज करवाई थी ?
- ‘श्री राम विहार’ आवासीय योजना की जिस विकास समिति के नाम से कार्रवाई की जा रही है, वो ही वर्ष 2022 के बाद अस्तित्व में आई है। अगर भूखंडधारियों ने 1996 में ही सोसाइटी से जमीन खरीद ली थी, तो फिर अवाप्ति के बाद से वर्ष 2021 तक किसी भूखंडधारी ने इस पर आपत्ति क्यों नहीं जताई?
- इस मामले में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की शिकायतों के बाद भी जेडीए ने अभी तक श्री राम विहार आवासीय योजना के नियमन की कार्रवाई को रोककर मामले की जांच क्यों नहीं शुरू की ?
- एक तरफ तो राज्य सरकार ने जेडीए द्वारा प्रशासन शहरों के संग अभियान में जारी किए गए पट्टों के जांच के आदेश दिए हैं। वहीं जेडीए स्तर पर ही किए गए इतने बड़े फर्जीवाड़े से आंखें क्यों मूंद ली गई हैं ?
सरकार तक को नहीं दी जमीन के अवाप्ति से मुक्तहोने की जानकारी
ये संभवतया पहला मामला होगा, जिसमें जेडीए द्वारा अवाप्त की गई जमीन को अदालत ने अवाप्ति से मुक्त कर दिया और जेडीए ने चुपचाप खातेदारों से मुआवजे की रकम मय ब्याज के वापस ले ली। इस बात की जानकारी सरकार तक को नहीं दी गई। सामान्यतया ऐसे मामलों में सरकार से अग्रिम कार्रवाई की अनुमति मांगी जाती है। साथ ही उच्च न्यायालय में अपील की कार्रवाई होती है। लिहाजा अब ये भी महत्वपूर्ण है कि जेडीए की संबंधित जोन, प्रवर्तन शाखा और लीगल सेल के वो कौन से अधिकारी रहे, जिन्होंने भूमाफिया से मिलकर ये सारा खेल रचा।
इनका कहना है
सरकार कराए घोटाले की ईडी से जांच, खुलेंगे कई राज
जेडीए अफसरों और भूमाफियाओं की मिलीभगत से ही इस घोटाले को अंजाम दिया गया है। जेडीए एक तरफ तो छोटे-छोटे प्रकरण में भी कोर्ट में चला जाता है। वहीं करीब 500 करोड़ रूपए की करीब 37 बीघा जमीन के मामले में अफसरों ने अपने स्तर पर ही मामला निपटा लिया। जेडीए को इतनी बड़ी राजस्व हानि पिछले कई सालों में नहीं हुई है। सरकार को इस मामले की जांच ईडी या सीबीआई से करवानी चाहिए। उन अफसरों के नामों का खुलासा होना चाहिए जो इस प्रकरण में शामिल हैं। साथ ही साथ प्रशासन को इस मामले में शामिल भूमाफियाओं के खिलाफ भी मुकदमे दर्ज करवाने चाहिए।
- गिरीराज खंडेलवाल, सचिव, राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी