NEW DELHI: दमन में राहुल ने कहा कि एक तरफ कांग्रेस पार्टी है जो कहती है कि हर जगह की संस्कृति, भाषा और इतिहास की रक्षा होनी चाहिए, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी और पीएम मोदी एक देश, एक भाषा की वकालत कर रहे हैं. लेकिन ऐसा कोई बयान सामने नहीं आया है जहां पीएम मोदी ने एक देश, एक भाषा की बात की हो.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 28 अप्रैल को दमन में एक चुनावी रैली के दौरान आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे देश पर हिंदी भाषा थोपना चाहते हैं. उन राज्यों में भी जहां मातृभाषा हिंदी नहीं है. उनके इस आरोप से राजनीतिक भूचाल आ गया है और बीजेपी समर्थक राहुल के आरोप को पूरी तरह से झूठा बता रहे हैं और पूछ रहे हैं कि पीएम मोदी ने ये बात कब कही?
राहुल गांधी ने हिंदी और मोदी पर क्या कहा?
दमन में राहुल ने कहा कि एक तरफ कांग्रेस पार्टी है जो कहती है कि हर जगह की संस्कृति, भाषा और इतिहास की रक्षा होनी चाहिए, दूसरी तरफ बीजेपी और पीएम मोदी एक देश की वकालत करते हैं. , एक भाषा. वीडियो में राहुल को यह कहते हुए सुना जा सकता है, "नरेंद्र मोदी जी कहते हैं, एक देश, एक भाषा। अब तमिल लोग कहते हैं भाई, एक भाषा कैसी रहेगी? तमिलनाडु में तमिल बोली जाती है। बंगाल में बंगाली बोली जाती है। गुजराती बोली जाती है।" गुजरात में विचारधारा की लड़ाई है.''
क्या नरेंद्र मोदी ने 'एक देश, एक भाषा' की बात की है?
हमें पीएम नरेंद्र मोदी का ऐसा कोई बयान नहीं मिला जिसमें उन्होंने 'एक देश, एक भाषा' लागू करने की बात कही हो. हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या वह तमिलनाडु पर हिंदी थोपना चाहते हैं तो उन्होंने जवाब दिया, ''इस देश का हर इंच मेरे लिए पवित्र है. इसी तरह इस देश की सभी भाषाएं भी मेरे लिए पवित्र हैं.'' राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी बनाई गई।
साल 2022 में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के मौके पर उन्होंने एक ट्वीट के जरिए हिंदी भाषा की सहजता और सहजता की सराहना की थी, इसी तरह पिछले साल इसी मौके पर उन्होंने हिंदी को राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने का माध्यम बताया था. लेकिन मोदी ने कभी नहीं कहा कि वे चाहते हैं कि पूरे देश में केवल हिंदी का ही बोलबाला हो.
तो क्या राहुल गांधी का आरोप पूरी तरह फर्जी है?
ये नहीं कहा जा सकता कि राहुल गांधी की बातें पूरी तरह फर्जी हैं. मोदी सरकार के कार्यकाल में दक्षिण भारत में हिंदी भाषा को लेकर विवाद खड़ा हो गया है
यह विवाद तब शुरू हुआ जब गृह मंत्री अमित शाह ने साल 2019 में हिंदी दिवस पर एक ट्वीट में कहा कि देश में एक भाषा का होना बहुत जरूरी है. उन्होंने लिखा, ''भारत विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना-अपना महत्व है, लेकिन पूरे देश की एक भाषा होना बहुत जरूरी है जो दुनिया में भारत की पहचान बनेगी. देश को एकता के सूत्र में बांधने का काम करती है हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।
इसके बाद ही दक्षिण भारत के राज्यों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. इस मुद्दे पर विवाद और विरोध के बाद बाद में बीजेपी ने हिंदी पर अपना रुख नरम कर लिया.
बाद में अमित शाह ने खुद हिंदी दिवस पर ट्वीट कर यह संदेश देने की कोशिश की कि बीजेपी सरकार के लिए सभी भारतीय भाषाएं महत्वपूर्ण हैं. उदाहरण के तौर पर उन्होंने साल 2021 में लिखा था कि हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि मित्र है. साथ ही उन्होंने ट्वीट कर कहा कि साल 2022 में हिंदी समेत सभी स्थानीय भाषाओं के समानांतर विकास के लिए मोदी सरकार प्रतिबद्ध है.
'एक देश, एक भाषा' पर सरकार का आधिकारिक रुख क्या है?
साल 2019 में संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने जवाब दिया कि भारत का संविधान सभी भाषाओं को समान मानता है और सरकार 'एक देश, एक भाषा' जैसे किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही है।
हिंदी भाषा पर क्या कहता है बीजेपी का घोषणापत्र?
भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कहीं भी सीधे तौर पर हिंदी भाषा का जिक्र नहीं किया है. हालाँकि, भाषाओं की बात करते समय विभिन्न स्थानों पर शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण और जनजातीय भाषाओं के संरक्षण और संरक्षण की बात कही गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि भाजपा दुनिया के प्रमुख उच्च शिक्षा संस्थानों में शास्त्रीय भारतीय भाषाओं की पढ़ाई की व्यवस्था करेगी।
दक्षिण भारत की राजनीति में हिंदी भाषा का विरोध लंबे समय से एक बड़ा मुद्दा रहा है।