कुप्रथा खत्म करने की दिशा में बड़ा फैसला, तैयार होगी ग्राउंड रिपोर्ट..

खाप पंचायतों की मनमानी पर लगेगी लगाम..हाईकोर्ट ने लिया बड़ा फैसला; कमेटी गठित!


राजस्थान हाईकोर्ट ने सामाजिक बहिष्कार, नाता प्रथा और खाप पंचायतों जैसी सामाजिक बुराइयों पर रोक लगाने के लिए उठाया कदम, कोर्ट कमिश्नर की टीम करेगी गांव-गांव का दौरा

मामले को गंभीरता से लेते हुए पांच सदस्यीय आयोग गठित, कमेटी में चार वरिष्ठ अधिवक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता शामिल, सुरक्षा पर भी जताई चिंता

जयपुर/जोधपुर।राजस्थान हाईकोर्ट ने सामाजिक बहिष्कार, नाता प्रथा और खाप पंचायतों जैसी सामाजिक बुराइयों पर रोक लगाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। जस्टिस फरजंद अली की सिंगल बेंच ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पांच सदस्यीय आयोग का गठन किया है, जो ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा कर इन कुप्रथाओं की जमीनी हकीकत की रिपोर्ट तैयार करेगा। दरअसल, आयोग में चार वरिष्ठ अधिवक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता को शामिल किया गया है। रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवश्यक निर्देश जारी करेगा। आयोग को संबंधित जिलों के पुलिस अधीक्षकों से पूरा सहयोग मिलेगा। गौरतलब है कि राजस्थान के पश्चिमी जिलों में खाप पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार, अवैध जुर्माना, जबरन नाता प्रथा और अन्य सामाजिक कुप्रथाएं आम हो गई हैं। अदालत ने इन मामलों को सख्ती से रोकने के लिए एक ठोस कार्ययोजना बनाने की जरूरत बताई है। जानकारी के मुताबिक यह आयोग खाप पंचायतों के अवैध फरमान, सामाजिक बहिष्कार के मामले और नाता प्रथा जैसी कुप्रथाओं का विस्तृत अध्ययन कर पीडि़त परिवारों और प्रभावित लोगों से बातचीत करेगा। इस दौरान राजस्थान हाईकोर्ट ने विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान के जिलों में सामाजिक बुराइयों के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई है। जोधपुर ग्रामीण, बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर, नागौर और पाली जैसे जिलों में खाप पंचायतों के तानाशाही फरमानों की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। बता दें कि इन जिलों के गांवों में आयोग का दौरा होगा। वहीं, पुलिस स्टेशनों का निरीक्षण कर मामलों की समीक्षा की जाएगी। साथ ही गांवों के सरपंच, ग्राम सेवक और ब्लॉक विकास अधिकारियों से भी चर्चा होगी।


गठित पांच सदस्यीय आयोग में चार वरिष्ठ अधिवक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता शामिल

हाईकोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय आयोग में चार वरिष्ठ अधिवक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता को शामिल किया गया है। इसमें एडवोकेट रामावतार सिंह चौधरी, एडवोकेट भागीरथ राय बिश्नोई, एडवोकेट शोभा प्रभाकर, एडवोकेट देवकीनंदन व्यास और सामाजिक कार्यकर्ता महावीर कांकरिया को शामिल किया गया है। ये सभी सदस्य कोर्ट कमिश्नर के रूप में कार्य करेंगे और अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश करेंगे। गौरतलब है कि राजस्थान में सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने की लंबे समय से मांग उठ रही थी। क्योंकि नाता प्रथा, सामाजिक बहिष्कार, अवैध पंचायत फरमान और महिलाओं के अधिकारों के हनन जैसी प्रथाएं संविधान के मूलभूत अधिकारों के खिलाफ हैं। इसलिए राजस्थान हाईकोर्ट के इस फैसले की चारों तरफ सराहना हो रही है।


पश्चिमी राजस्थान के जिले ज्यादा प्रभावित, हाईकोर्ट ने जताई चिंता
जस्टिस फरजंद अली की सिंगल बेंच में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अर्जुन सिंह ने समाज में व्याप्त कुप्रथाओं के वो मुद्दे उठाए, जिसमें खाप नेता सामाजिक बहिष्कार और जुर्माना लगाने जैसे फैसले सुनाते हैं। कोर्ट ने कहा कि भारत में सामाजिक सुधार की जड़ें राजा राम मोहन राय के समय में देखी जा सकती हैं, जिन्होंने इसके विरोध के लिए बौद्धिक सुधार आंदोलन चलाया था। समय-समय पर सामाजिक बुराइयों को खत्म करने की दिशा में काम किया गया है। ऐसे में कोर्ट को लगता है कि विभिन्न ग्रामीण स्तर पर इनकी हकीकत जानने की आवश्यकता है, ताकि उन बीमारियों की गहराई तक जाया जा सके और उनको समाप्त करने के लिए प्रयास किया जा सकें।

कोर्ट कमिश्नर के रूप में काम करेंगे सदस्य, पुलिस से बनाएंगे समन्वय
आयोग के सभी सदस्य प्रभावित जिलों में पुलिस अधीक्षक के साथ समन्वय में काम करते हुए कोर्ट कमिश्नर के रूप में काम करेगा। पुलिस अधीक्षक से अपेक्षा की जाती है कि वे नियुक्त आयुक्तों को पूरी सहायता प्रदान करें और उनकी यात्रा के दौरान सशस्त्र सुरक्षा सहित उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करें। आयुक्त प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस स्टेशनों का निरीक्षण कर थानाधिकारियों के साथ बातचीत करेंगे और यदि आवश्यक हो तो सरपंच, ग्राम सेवक और ब्लॉक विकास अधिकारी जैसे स्थानीय अधिकारियों के साथ बातचीत करके रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों की आड़ में किए गए कदाचारों पर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करेंगे। कोर्ट में पेश करेंगे ताकि इन बुराईयों के मूल तक जाकर उन्हे समाप्त किया जा सके।