पिछली सरकार सिर्फ कर गई घोषणा..नहीं मिला किसी को लाभ राजस्थान के पशुपालकों के साथ बड़ा धोखा..‘कामधेनु योजना’ का लगभग हुआ ‘डब्बा गोल’!

गहलोत राज में की गई थी कामधेनु पशु बीमा योजना की घोषणा, पहले विधानसभा चुनाव के चलते लगा अड़ंगा, अब नई सरकार भी इस पर खामोश, प्रदेश के डेढ़ करोड़ पशुओं का होना था बीमा

पशुपालन विभाग को नई गाइडलाइन का इंतजार, योजना में पंजीकृत पशु पालक परिवार के अधिकतम दो दुधारू पशुओं का 40 हजार रुपए प्रति पशु के हिसाब से निशुल्क बीमा किया जाना था

जयपुर। प्रदेश में पशुपालकों के पशुओं के लिए शुरू हुई कामधेनु पशु बीमा योजना सरकार बदलते ही गोल हो गई हैं। यह योजना विधानसभा का चुनाव शुरू होने के कुछ समय पहले ही शुरू हुई थी। इस दौरान कुछ पशु पालकों से आवेदन लिए गए। लेकिन, जब तक इनको स्वीकृत या अस्वीकृत किया जाता सरकार बदल गई। सरकार बदलते ही यह योजना अधरझूल में फंस गई। अब नई सरकार ने इस योजना को लेकर अब तक कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया। जिसकी वजह से प्रदेश के किसी भी जिले में पशुओं का बीमा नहीं हो रहा है। योजना संचालित रहने की स्थिति में प्रदेश में 1 करोड़ 39 लाख 37 हजार 630 गोवंश लाभान्वित हो सकते थे।

कामधेनु पशु बीमा योजना में पंजीकृत पशु पालक परिवार के अधिकतम दो दुधारू पशुओं का 40 हजार रुपए प्रति पशु के हिसाब से बीमा किया जाना था। बीमा नि:शुल्क किया जाना था। इसके अलावा पशुओं की अधिकता की स्थिति में अन्य पशुओं का बीमा भी प्रावधानों के तहत सरकारी निर्देशानुसार किया जा सकता था। वर्ष 2023 के दिसंबर में कामधेनु बीमा योजना के शुरू होने के साथ ही प्रदेश के सभी जिलों के पशुपालन विभाग को पशुओं का बीमा करने के लिए दिशा-निर्देश तत्कालीन राज्य सरकार की ओर से जारी किए गए थे। सभी जिलों के संयुक्त निदेशक पशुपालन विभाग को पशुपालकों के यहां जाकर बीमा करने की गाइडलाइन जारी की। लेकिन, इसके लिए अतिरिक्त भत्ता आदि देय नहीं होने से चिकित्सक हड़ताल पर चले गए। करीब सप्ताह भर बाद हड़ताल समाप्त तो हुई। लेकिन, तब तक चुनावी जाजम बिछनी शुरू हो गई। इस तरह से इस योजना पर फिर कोई काम ही नहीं हो पाया।

आवेदन मिले पर प्रक्रिया ही आगे नहीं बढ़ी, प्रदेश में 15 सौ पर अटका आंकड़ा
पशुपालन विभाग को जिलेवार पशुओं का बीमा कराने के लिए संयुक्त निदेशक पशुपालन विभाग को दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। इस दौरान कई जिलों में कुछ आवेदन तो लिए गए। लेकिन, इन आवेदनों की न तो समुचित तरीके से स्क्रीनिंग हो पाई और न बीमा हो पाया। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में कुल बीमित पशुओं की संया महज 15 सौ से ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई। अब पशु बीमा योजना के संदर्भ में नई गाइडलाइन जारी होने का इंतजार किया जा रहा है। इसमें गोवंशों के साथ अन्य पशुओं को भी जोड़ा जाएगा।


पशुओं की बीमा योजना पर भारी सियासत, पशुपालकों को सीधा नुकसान
जानकार सूत्रों के अनुसार तत्कालीन राज्य सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई भामाशाह पशुधन बीमा योजना भी सरकार बदलते ही ठंडे बस्ते में चली गई थी। उसी तरह से वर्ष 2024 में कामधेनु योजना का हश्र हुआ। कुल मिलाकर सरकारें किसी की भी रहे, लेकिन नुकसान पशुपालकों का ही होता जा रहा। पशु बीमा योजना पशुपालकों के लिए आधार स्तंभ है। यदि पशु दुर्घटना का शिकार होता है तो उसके पालक को बीमा कंपनी की ओर से मदद मिलती है। पशुधन के विकास में भी पशु बीमा योजना महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कामधेनु पशु बीमा योजना के तहत प्रत्येक पशु पालक को अधिकतम दो पशुओं के लिए प्रति पशु 40 हजार की सहायता राशि दी जानी थी। 

इस असफल योजना का पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत अब भी ले रहे है श्रेय
इधर, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि कांग्रेस तो जनता की भैंस भी खोल कर ले जाएगी। इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री के बयान पर हैरानी जताते हुए कहा कि कांग्रेस लोगों की भैंस खोलने में नहीं बल्कि उनकी भैंस को सुरक्षित करने में यकीन रखते है। गहलोत ने कहा कि कांग्रेस भैंस खोलने वाली नहीं, बल्कि उनकी सरकार ने तो किसानों की भैंसों का बीमा कराने की योजना दी थी। प्रधानमंत्री के बयान पर पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने सवाल उठाए। गहलोत ने कहा कि कांग्रेस भैंस खोलने वाली नहीं, बल्कि उनकी सरकार के समय तो किसानों के दो पशुओं का बीमा शुरू किया गया था। गहलोत ने आगे कहा कि मोदी जी के बयान इन दिनों अजीबोगरीब आ रहे हैं, पता नहीं क्या बोल रहे हैं। गहलोत ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने पशु बीमा किया था, जबकि बीजेपी कभी भैंस तो कभी मंगलसूत्र लेकर आ जाती है।