राजस्थान में हो रही ‘डिजिटल मौतें’..ईकेवाईसी ने छीन लिया बुर्जर्गों का हक!
सरकारी रिकॉर्ड में दिखाया जा रहा मृत या राज्य से बाहर, लाखों बुजुर्ग पेंशन से वंचित, चंद लोगों की कहानी उन्हीं की जुबानी, डेटा में जो फीड नहीं उनकी हैसियत जीरो
जरूरी लाभों से ‘डिजिटल रूप से बाहर’ किया जा कमजोर तबके को, बुजुर्ग, विधवाएं, विकलांग लोग, गरीब को सिस्टम से ही मिटा दिया गया
अकेले राजस्थान में राज्य के 90.98 लाख पेंशनभोगियों में से 13.54 लाख से अधिक लोगों की पेंशन अचानक रद्द
जयपुर। किसी दूसरी दुनिया में 103 वर्षीय मीणा राम की मृत्यु हो चुकी होती। राजस्थान सरकार भी यही सोचती थी, जब उनके भतीजे ने पूछा कि पिछले दो सालों से उनकी पेंशन और राशन क्यों बंद है, तो जवाब मिला कि अब वे जिंदा नहीं हैं। कम से कम जयपुर में सरकारी केवाईसी डेटा से तो यही जानकारी मिली है। फिर भी, कमजोर होने के बावजूद मीणा राम अभी भी जिंदा हैं, चारपाई पर लेटी हुई हैं और पीले दुपट्टे से अपनी आंखों को धूप से बचा रही हैं। उन्हें पिछले दो सालों से 500 रुपये की मासिक पेंशन और 35 किलो अनाज का राशन नहीं मिला है। ऐसा इसलिए क्योंकि राजस्थान सरकार ने पेंशन के लिए ईकेवाईसी अनिवार्य कर दिया। पांच महीने पहले उनके दो भतीजे उनके ढलते शरीर को उनकी छोटी सी झोपड़ी से उठाकर राजसमंद जिले की भीम तहसील में अपने गांव ले आए, उन्हें शर्म आ रही थी कि पड़ोसियों ने दया करके उन्हें खाना खिलाना शुरू कर दिया था। राजस्थान में ऐसी ही समस्याओं का सामना कर रहे लाखों लोगों में से यह एक कहानी है। 103 साल की मीणा राम कमजोर हैं, मगर जिंदा हैं, जबकि आधिकारिक रिकॉर्ड में उन्हें ‘मृत’ बताया गया है। डेटा में त्रुटियों के कारण लगभग दो साल पहले उनकी पेंशन और राशन मिलना बंद हो गए थे।
इसी तरह अजमेर के टाटगढ़ गांव में अरावली की पहाडिय़ों में एक छोटे से घर में रहने वाली 90-वर्षीय लक्ष्मी देवी को 1,500 रुपये की पेंशन मिलनी बंद हो गई, क्योंकि उन्हें ‘राज्य से बाहर’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, भले ही उन्होंने कभी राजस्थान नहीं छोड़ा हो। उनके पास आधार कार्ड नहीं है और उनका बायोमेट्रिक डेटा रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता; उन्हें दोनों आंखों से दिखना बंद हो गया है और उनके हाथ इतने टेढ़े और मुड़े हुए हैं कि उनके फिंगरप्रिंट नहीं लिए जा सकते। ऐसे में डिजिटल इंडिया का वादा दूर के ख्वाब जैसा है, लेकिन कुछ लोग नक्शे से गायब हो रहे हैं। कारण अलग-अलग हैं, लेकिन नतीजा एक ही है — लोगों को जरूरी लाभों से ‘डिजिटल रूप से बाहर’ किया जा रहा है और वह अक्सर सबसे कमजोर होते हैं। बुजुर्ग, विधवाएं, विकलांग लोग, गरीब — जिन्हें सिस्टम से मिटा दिया जाता है। वह पेंशन, राशन और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) भुगतान के इंतजार में डिजिटल मौत मरते हैं क्योंकि उनका केवाईसी नहीं किया गया है या उनका बायोमेट्रिक डेटा आधार डेटाबेस में दर्ज नहीं है। अकेले राजस्थान में राज्य के 90.98 लाख पेंशनभोगियों में से 13.54 लाख से ज़्यादा लोगों की पेंशन अचानक रद्द कर दी गई है। बहुत से लोग आधिकारिक डेटाबेस में मृत या राज्य से बाहर के रूप में चिह्नित हैं, जबकि वह पूरी तरह से जिंदा हैं और अपने गृह गांवों में रहते हैं और ये वह लोग हैं जो बुनियादी जीवनयापन के लिए राज्य के लाभों पर निर्भर हैं।
डिजिटल बहिष्कार के खिलाफ अब आवाज हो रही बुलंद, सरकार पर आने लगा दबाव
पिछले महीने दिल्ली में मजदूर किसान शक्ति संगठन द्वारा राज्य में पेंशनभोगियों के बड़े पैमाने पर डिजिटल बहिष्कार पर आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वीडियो रिकॉर्डिंग के जरिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर ने कहा कि इस तरह का बहिष्कार जारी नहीं रह सकता। यह अब जिंदगी के अधिकार का मुद्दा है। कार्यकर्ताओं का तर्क है कि राज्य के लाभों को आधार और आधार-आधारित भुगतान प्रणाली से जोडक़र, डिजिटल इंडिया ने उन लोगों के खिलाफ काम करना शुरू कर दिया है, जिनकी मदद करने के लिए इसे बनाया गया था। विडंबना यह है कि 2018 के सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सामाजिक कल्याण भुगतान के लिए आधार अनिवार्य नहीं है। यहीं पर कई नागरिक समाज समूहों ने कदम रखा है। महीनों से वह राजस्थान के पेंशन संकट का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं और वंचित पेंशनभोगियों को एक अपारदर्शी डिजिटल भूलभुलैया से बाहर निकलने में मदद करने के लिए शिविर लगा रहे हैं।
पेंशन के लिए प्रक्रिया बुरे सपने की तरह, 15-चरणीय प्रक्रिया ने कर दिया हैरान
यह प्रणाली एक भूलभुलैया है जो कागजी कार्रवाई में पारंगत न होने वाले किसी भी पेंशनभोगी को फंसा सकती है। सबसे पहले, उन्हें आधार कार्ड चाहिए होता है — लेकिन राजस्थान में, यह पर्याप्त नहीं है। इसे जनआधार से भी जोड़ा जाना चाहिए, जिसमें पूरे परिवार का सामाजिक आर्थिक डेटा शामिल होता है। इसके बाद ईकेवाईसी सत्यापन और पेंशन पोर्टल पर विवरण दर्ज करना होता है। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो हर महीने के पहले सप्ताह में भुगतान आना शुरू हो जाना चाहिए। लेकिन अक्सर, यह सुचारू रूप से नहीं चलता। फिर एक जगह से दूसरी जगह जाने का समय आ जाता है। अगर किसी पेंशनभोगी को मृत, राज्य से बाहर के रूप में सूचीबद्ध किया जाता है, या उसका डेटा मेल नहीं खाता है, तो उन्हें अपने दस्तावेज स्थानीय पंचायत में ले जाना पड़ता है, जो राज्य के सामाजिक न्याय विभाग को एक पत्र जारी करता है। पत्र को ब्लॉक कार्यालय भेजा जाता है, जिसके बाद बायोमेट्रिक वेरीफिकेशन होता है, जिसके लिए अक्सर एक और चक्कर लगाना पड़ता है।
रिकॉर्ड हटा दिए जाने के बाद कई लोगों ने खो दिया पेंशन का अधिकार
राजस्थान की एक विधवा टीपू देवी ने जन आधार प्रणाली से अपने रिकॉर्ड हटा दिए जाने के बाद अपनी 750 रुपये मासिक पेंशन खो दी। सिंह फिर एक पेंशन भुगतान पर्ची देखते हैं और अपने सहयोगी रंजीत को पेंशन भुगतान आदेश (पीपीओ) नंबर पढ़ाते हैं, जो जल्दी से इसे भुगतान पोर्टल में टाइप कर देता है। टीपू देवी की प्रोफाइल खुलती है, जिसमें उनका नाम, उम्र, पता और पेंशन प्राप्त करने की अंतिम तिथि दिखाई देती है। उन्होंने अगस्त 2013 से जनवरी 2022 तक हर महीने अपनी पेंशन ली है। रोके जाने का कारण बताया गया कि जनआधार पर सदस्य रिकॉर्ड हटा दिया गया। लेकिन पोर्टल यह नहीं बताता कि टीपू देवी का रिकॉर्ड क्यों हटा दिया गया।
लक्ष्मी देवी के हाथ इतने टेढ़े और मुड़े हुए हैं कि उनकी उंगलियों के निशान नहीं लिए जा सकते
ण्क पीडि़ता लक्ष्मी देवी के हाथ इतने टेढ़े और मुड़े हुए हैं कि उनकी उंगलियों के निशान नहीं लिए जा सकते, जिससे वे इस उलझन में हैं कि अपनी पेंशन को कैसे बहाल करें। यह सच है कि कई मामलों में लोगों को राज्य से बाहर या मृत के रूप में सूचीबद्ध किया जाता है, लेकिन यह एक विसंगति है। ऐसा इसलिए हुआ होगा क्योंकि उनका बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण नहीं किया गया होगा, या हमारे फील्ड एजेंट उन्हें सत्यापित करने में सक्षम थे। इस मानक को पूरा करने के लिए, राजस्थान ने 7 मार्च से जनआधार पोर्टल पर नए विकलांगता आवेदन स्वीकार करना बंद कर दिया और केंद्र सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन के बाद एपीआई के माध्यम से अपने डेटाबेस को यूडीआईडी पोर्टल पर पोर्ट करने का प्रयास किया। हालांकि, केंद्र सरकार ने अभी तक राजस्थान के साथ अपना डेटा साझा नहीं किया है।