राहुल गांधी का बिहार दौरा

पटना. क्या कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार का ‘अज्ञातवास’ खत्म होने जा रहा है? कन्हैया कुमार ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ यात्रा समाप्त करने के बाद क्या हाशिये पर चले गए हैं? क्या कन्हैया कुमार की भूमिका को लेकर अभी भी लालू यादव और तेजस्वी यादव से कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मतभेद हैं? बता दें कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी बीते छह महीने में पांचवीं बार 6 जून को बिहार आ रहे हैं. राहुल गांधी के ये दौरे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के तहत हो रहे हैं. राहुल गांधी इन दौरों के जरिए कांग्रेस की स्थिति मजबूत करने और महागठबंधन को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. इस साल पहली बार जनवरी में राहुल गांधी बिहार आए थे.

राहुल गांधी की 6 जून 2025 को राजगीर में अति पिछड़ा सम्मेलन को संबोधित करने बिहार आ रहे हैं. राहुल गांधी ने बीते सभी बिहार दौरे के दौरान NDA की नीतीश सरकार को चुनौती देने का प्रयास किया है. लेकिन कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार की भूमिका को लेकर बीते कई महीनों से सवाल उठ रहे हैं. क्या महागठबंधन की आंतरिक राजनीति एक बार फिर से कन्हैया कुमार को बिहार चुनाव से दूर कर रही है?

राहुल गांधी की बिहार में लगातार सक्रियता कांग्रेस की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत पार्टी अपनी खोई जमीन को वापस पाने की कोशिश कर रही है. बिहार में कांग्रेस का प्रभाव 1989 के बाद से लगातार कम हुआ है, और 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर लड़ने के बावजूद केवल 19 सीटें जीतने से महागठबंधन को नुकसान हुआ था. इस बार, राहुल गांधी ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ और ‘शिक्षा न्याय संवाद’ जैसे अभियानों के जरिए युवाओं, दलितों, और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. 7 अप्रैल को बेगूसराय में कन्हैया कुमार की ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पदयात्रा में उनकी भागीदारी ने युवाओं में उत्साह पैदा किया, लेकिन RJD के साथ तनाव को भी उजागर किया. कांग्रेस की रणनीति में कन्हैया कुमार को युवा चेहरा बनाकर पेश करने की कोशिश साफ दिखती है. बेगूसराय में उनकी ‘नौकरी दो’ रैली और शिक्षा पर केंद्रित अभियान बिहार के युवाओं की बेरोजगारी और शिक्षा संकट को मुद्दा बनाने की कोशिश है. कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार भी दो महीने पहले बिहार की राजनीति में सक्रिय हुए थे. उन्होंने ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ यात्रा की शुरुआत की थी, जो बेरोज़गारी और पलायन जैसे मुद्दों को लेकर युवाओं को जागरूक करने का प्रयास था. यह यात्रा पूर्वी चंपारण से शुरू होकर पटना तक गई थी. इस यात्रा के बेगूसराय पहुंचने पर राहुल गांधी भी यात्रा में शामिल होने बिहार आए थे. 

लेकिन इस यात्रा के समाप्ति और दिल्ली में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव में मुलाकात के बाद रणनीति में थोड़ा बदलाव दिख रहा है. इस मीटिंग के बाद से राज्य की राजनीति से कन्हैया कुमार लगभग गायब तब हो गए हैं, कांग्रेस को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है. ऐसे में राहुल गांधी का बिहार दौरा हो सकता है कि कन्हैया कुमार की सक्रियता महागठबंधन की राजनीति में नई हलचल का संकेत दे सकता है. यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस और राजद के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर क्या समझौता होता है और कन्हैया कुमार की भूमिका आगामी चुनावों में क्या होती है?

राहुल गांधी ने पिछले छह महीनों में बिहार में पांच बार दौरा किया है, जो कांग्रेस की चुनावी रणनीति और महागठबंधन में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश को दर्शाता है. उनकी अगली यात्रा की तारीख अभी अनिश्चित है, लेकिन नालंदा (राजगीर) में प्रस्तावित दौरा टलने के बाद जल्द ही नई तारीख की घोषणा हो सकती है. उनके दौरे मुख्य रूप से पटना, दरभंगा, बेगूसराय, गया, और नालंदा जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित रहे हैं, जहां कांग्रेस दलित, OBC, EBC, और युवा मतदाताओं को लक्षित कर रही है. बिहार चुनाव की बढ़ती सरगर्मी को देखते हुए, उनके भविष्य के दौरे इन क्षेत्रों के अलावा अन्य महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्रों को भी कवर कर सकते हैं.