पक्ष-विपक्ष मिलजुल कर करते हैं सदन में विवाद!


राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। बजट पेश किये जाने के बाद चर्चा के दौरान एक शब्द को लेकर 5 दिन तक सदन के भीतर और बाहर सरकार और प्रतिपक्ष ने जो कुछ किया, वो प्रदेश की जनता ने देखा, पढ़ा और सुना। सदन के अंदर बजट पेश करने के बाद उसपर चर्चा होनी थी, चर्चा से प्रदेश का भला होता, बजट की मांगों पर बहस होती और विपक्ष के द्वारा जो राय दी जाती, उसके अनुसार सरकार काम करती तो राज्य की जनता ने जिन उम्मीदों के साथ विधायकों को चुनकर भेजा है, उसका प्रतिफल निकलता। विधानसभा में पक्ष और विपक्ष के बीच कई बार बेवजह की बहस होती है, उसके कारण सदन का समय खराब होता है। जरूरत के मुकाबले वैसे ही सदन की बैठकें कम हो चुकी हैं, और उसमें यदि बेवजह की बहस होगी, विवाद होगा, विपक्ष के द्वारा सदन का बहिष्कार किया जाएगा तो फिर आप समझ ही सकते हैं कि जनता के हितों का दावा करने वाले माननीयों के द्वारा अंदर क्या किया जा रहा है।
बजट पेश करने के बाद मंत्री अविनाश गहलोत के द्वारा पूर्व पीएम इंदिरा गांधी को कांग्रेस की 'दादी' कहे जाने पर विवाद हुआ। विपक्ष ने हंगामा किया और 'दादी' शब्द को हटाने की मांग की, किंतु स्पीकर वासुदेव देवनानी ने हटाने के बजाए विपक्ष को निशाने पर ले लिया। कहने को तो विधानसभा अध्यक्ष दोनों को समान रूप से देखता है, दोनों पक्षों के साथ न्याय करता है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से देखा जा रहा है कि विधानसभा स्पीकर पूरी तरह से सत्ता का संरक्षक बनकर रह गया है। विपक्ष की मांगों को एक झटके में खारिज करके सत्ता पक्ष को पूरा संरक्षण देने का काम स्पीकर द्वारा किया जाता है। ऐसा केवल वर्तमान अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ही नहीं करते, बल्कि इससे पहले सीपी जोशी, कैलाश चंद मेघवाल और दीपेंद्र सिंह शेखावत ने भी काफी हद तक किया। यह बात और है कि इसमें अब लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। स्पीकर का चुनाव पक्ष—विपक्ष मिलकर करते हैं। स्पीकर का पद संवैधानिक होता है, यानी जब किसी विधायक को सदन का अध्यक्ष चुना जाता है, तब वो किसी दल का सदस्य नहीं रहता है। किंतु फिर भी आपने देखा होगा कि स्पीकर पार्टी के कार्यक्रम का हिस्सा बनता है।
वैसे तो इंदिरा गांधी का राजस्थान विधानसभा में जिक्र करना ही गलत था, जो पूर्व पीएम इस दुनिया में ही नहीं हैं, उसका नाम लेकर विपक्ष का चिढ़ाना कतई बेकार परंपरा है। अच्छा तो यह होता कि अध्यक्ष को बिना कहे ही 'दादी' शब्द को सदन की कार्यवाही से हटा देना चाहिए था, लेकिन विपक्ष के द्वारा उग्र मांग करने और लगातार हंगामा करने के बाद भी स्पीकर देवनानी ने ऐसा नहीं किया, जिसके कारण विवाद बढ़ता चला गया। सदन की कार्यवाही अब सोशल मीडिया पर लाइव होती है, इसलिए पूरी जनता उसे देखती है। लोग अपने मोबाइल में पूरा घटनाक्रम देख लेते हैं और उसके अनुसार ही दलों, नेताओं और अध्यक्ष के प्रति अपना माइंड सेट बनाते हैं। सरकार के प्रति भी और स्पीकर के साथ ही विपक्ष के प्रति भी विधानसभा की कार्यवाही से लोगों की धारणा बनती है। पिछली सरकार में अध्यक्ष रहते सीपी जोशी ने पत्रकारों का कवरेज सीमित करते हुए चौथाई पास बनाए। जोशी ने विधानसभा की कार्यवाही कवर कर विभिन्न अखबारों में लिखने वाले 'स्वतंत्र पत्रकारों' के अवसर छीन लिए गये। देवनानी तो जोशी से भी आगे निकल गये। पूरे अधिकार ही अपने पीआरओ को सौंप दिये, जो लैंगिक भेदभाव के आधार पर प्रवेश पास बनाते हैं। बरसों तक पत्रकारिता में खपाने वाले 'स्वतंत्र पत्रकार' विधानसभा प्रवेश पत्र की गुहार लगाते रहते हैं और उन महिलाओं के पास नियमित पास बना दिये जाते हैं, जो एक दो साल पहले पत्रकारिता में आई हैं, जो यूट्यूब पर पत्रकारिता करती हैं। सदन की कार्यवाही जब तक पत्रकार अपनी आंखों से नहीं देख लेता, तब तक शब्दों में वो असर नहीं छोड़ पाता, जो यूट्यूब पर वीडियो देखकर लिखता है।
जनता सोच रही है 'दादी' मंत्री के मुंह से शब्द यूं ही निकल गया होगा, लेकिन हकीकत यह है कि यह बहुत सोच समझकर बोला गया शब्द था, ताकी विपक्ष इसपर विवाद करे और बिना बहस के ही बजट को पास करा लिया जाए। इस मामले में सबसे बड़ी भूमिका अध्यक्ष देवनानी की रही, जिनको सदन चलाने, गतिरोध खत्म करने, विवाद को शांत करने की जिम्मेदारी थी, किंतु देवनानी ने घड़ियाली आंसू बहाने जैसी नौटंकी तक कर डाली। उनको अध्यक्ष के नाते दोनों पक्षों को समान भाव से देखना चाहिए, मगर जब तक सत्ता की तरफ से इशारा नहीं होता, तब तक अध्यक्ष एक काम नहीं करता। एक समय था, जब पूरा सत्ता पक्ष अध्यक्ष के सामने नतमस्तक रहता था, उसे पता था कि सदन के भीतर अध्यक्ष ही मालिक हैं। किंतु अब परिस्थितियां बदल गयी हैं। अध्यक्ष को राजनीतिक लाभ चाहिए होता है। उसे सरकार के साथ तालमेल बिठाते हुए देखा जाता है। 'दादी' शब्द से पहली बात तो कांग्रेस को दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी, उसे उग्र होने की कतई आवश्यकता नहीं थी। दूसरी बात यह है कि यदि विपक्ष को आपत्ति थी तो देवनानी को उसे कार्यवाही हटाने में क्या दिक्कत थी? हर दिन कई शब्द हटाए जाते हैं, एक शब्द और हट जाता तो क्या अनर्थ हो जाता? और यदि अनर्थ ही हो रहा था तो बाद में क्यों हटाया गया? इसका मतलब यह है कि अध्यक्ष खुद ही विवाद करवाना चाहते हैं। 'दादी' की नाक के लिए विवाद बढ़ गया और डोटासरा ने डायस पर चढ़कर विवाद को और बढ़ा दिया।
असल बात यह है कि पक्ष और विपक्ष में मिलकर ही विवाद बनाते हैं, और जब हित साध लिये जाते हैं तो मिलकर विवाद को खत्म कर लिया जाता है। मीडिया को बताया जाता है कि फलां नेता की पहल पर गतिरोध खत्म हो गया है। सीएम की पहल पर, अध्यक्ष की पहल पर, नेता प्रतिपक्ष की पहल पर। यदि ये लोग गतिरोध खत्म ही करते हैं, तो इतना लंबा खींचकर जनता को मूर्ख बनाने का विफल प्रयास क्यों किया जाता है? पहल पहले क्यों नहीं करते? केवल मीडिया में प्रचार करने के लिए? अपने निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को दिखाने के लिए? बजट पेश होने के बाद चार—पांच दिन तक पक्ष—विपक्ष के बीच उसपर बहस होती है। उसके आधार पर सरकार बजट पास होने के बाद विधानसभा क्षेत्रों में उसे लागू करने का काम भी करती है, लेकिन इस बार विपक्ष ने बहस में हिस्सा ही नहीं लिया, सत्ता पक्ष की ओर से विधायकों ने हमेशा की तरह बजट पर सरकार की वाहवाही कर इतिश्री कर ली। तीन बार के सीएम अशोक गहलोत, पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने बजट पर कुछ नहीं बोला। ये सभी लोग 'दादी' नाक को लेकर धरना दे रहे थे।
विपक्ष ने 'दादी' शब्द हटाने की जिद पकड़ ली तो स्पीकर देवनानी ने भी जिद पकड़कर सदन की कार्यवाही बाधित करने का काम किया। सरकार की ओर से पहल नहीं की गई। विपक्ष ने देवनानी के कक्ष में जाकर मामले पर स्पष्टीकरण देने और 'दादी' शब्द हटाने की मांग की, लेकिन अध्यक्ष ने नहीं हटाया। अध्यक्ष के कक्ष में विपक्ष ने माफी भी मांगी बताई, लेकिन डोटासरा ने सदन में नहीं मांगी और उनकी जगह जूली ने खेद प्रकट किया। ईमानदारी होती तो दोनों ओर चाहिए था, कि विवाद को सुलझाने के लिए पहल की जाती। अध्यक्ष की जिद, विपक्ष की हठधर्मिता और सत्ता पक्ष का स्वार्थ मिलकर जनता का पैसा बर्बाद करता रहा, अंततः: जब दोनों ओर से समझौते कर लिए गए, तो गतिरोध समाप्त होने की घोषणा कर दी गई। इसका अर्थ यही है कि विवाद और गतिरोध दोनों और से मिल-जुलकर किया जाता है।
रामगोपाल जाट
वरिष्ठ पत्रकार