कुशलगढ़ सृष्टि सृजन की सर्वश्रेष्ठ कृति मानव है और मानव में जो परहित विशेषतः दीन-दुःखी , शोषित-वंचितों के लिए संपूर्ण जीवन समर्पित करें ,वे विरले होते है। आज हम भारतवर्ष के उत्तरप्रदेश प्रान्त की इटावा ग्राम में 10 मार्च 1905 को जन्में तथा मध्यप्रदेश के बामनिया उपखंड में 26 दिसंबर 1998 को महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए मामा बालेश्वर दयाल की बात करते हैं।मामा बालेश्वर दयाल को लोग मामाजी के नाम से संबोधित करते हैं। मामाजी का पूरा नाम बालेश्वर दयाल दीक्षित था , प्रारंभिक जीवन से ही मामाजी सदैव सत्याग्रह के लिए अटल रहे , दीन-दुखियों , आदिवासियों , दलितों , शोषित वंचितों के लिए अनेक बार संघर्ष करते हुए कारागार में रहना पड़ा।मामाजी अनेक संघर्षों से लड़ते हुए मध्यप्रदेश के बामनिया में अपनी कर्मस्थली निर्धारित कर , यहां के भील जनजाति के संघर्षमय जीवन को देखकर उनके सर्वस्व कल्याण के लिए कार्य किये। इस कारण राजस्थान, मध्यप्रदेश व गुजरात के सीमान्त क्षेत्र में निवासरत भील जनजाति के लोग मामाजी को मसीहा मानते हैं । यहाँ के भील आदिवासी अपनी फसल की प्रथम उपज को मामाजी को भेट चढ़ाने के बाद ही एक दूसरे को आदान प्रदान कर सहयोग के भाव से ग्रहण करते हैं। मामाजी ने अंग्रेज़ी हुकूमत के समय आदिवासियों को अन्नदाता कहकर संबोधित किया जबकि उस समय अन्नदाता कहने पर अंग्रेज दण्डित करते थे। मामाजी ने बामनिया आश्रम में भील जनजाति के बच्चों को निःशुल्क पढ़ाना शुरु किया एवं उनमें राष्ट्रभक्ति व संस्कारों का बीजारोपण किया। इस जनजाति बाहुल्य क्षेत्र में मामाजी के अथक प्रयासों से लोगों ने मदिरा पान , मांसभक्षण आदि दुर्व्यसनों को त्याग दिया। आज इस क्षेत्र में अनेक घरों में मामाजी के जागरण के रुप में भजनों का गायन होता है। मामाजी के पदचिह्नों पर चलकर यहाँ का आदिवासी भगत परंपरा को स्वीकार कर सादगीपूर्ण सात्विक जीवन यापन कर रहा है। तात्कालिन समय में प्रचलित अनेक कुप्रथाओं यथा बेगार ,जागीरदारी , अशिक्षा , पलायन आदि के लिए मामाजी के किये गये प्रयास आज परिलक्षित हो रहे हैं। मामाजी यहाँ के लोगों को जल ,जंगल व जमीन के अधिकार के लिए शिक्षित व संगठित कर उनके लिए सामाजिक सुधार के प्रयास आजीवन करते रहे । इस क्षेत्र के लिए मामाजी भगवान स्वरुप है जिनके कारण यहाँ के जनजाति वर्ग में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिला। मामाजी का संपूर्ण जीवन सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता , समाजसुधारक के रुप में आदिवासियों के कल्याण के लिए समर्पित रहा। उनका जीवन दर्शन युवा पीढ़ी को नित्य प्रेरणा देता रहेगा।मामाजी के समाधि स्थल बामनिया (मध्यप्रदेश) दर्शन का मुझे भी सौभाग्य प्राप्त हुआ , आज इस पुण्यात्मा के समाधि स्थल को जीर्णोद्धार व सौन्दर्यीकरण की महती आवश्यकता है। मामाजी की पुण्यतिथि पर हम सब पुण्यात्मा को विनम्र श्रद्धांजलि करते हैं।
: