संपादकीय
रामनिवास चौधरी
इस बार एग्जिट पोल के अनुमान सहीं साबित हुए। भाजपा ने जोरदार वापसी करते हुए दिल्ली की गद्दी पर कब्जा जमा लिया। 27 साल पहले भाजपा की सुषमा स्वराज 52 दिन के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री रही थीं। इतने लंबे समय सत्ता से दूर रहने के बाद आखिर भाजपा को वह जीत मिली जिसका उसे ढाई दशकों से अधिक समय से इंतजार था। इस बार की जीत इसलिए और खास है क्योंकि भाजपा ऐसा प्रदर्शन मोदी लहर में भी नहीं कर पाई थी। शुक्रवार सुबह आठ बजे से हो रही गणना से साफ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी ने आम आदमी पार्टी को दिल्ली में जीत का चौका लगाने से रोक दिया है। बात कुछ बीते दिनों की करें तो आम आदमी पार्टी जो खुद को कट्टर ईमानदार कहती थी, उस पर लगा भ्रष्टाचार का कथित दाग उसके लिए हार का सबसे बड़ा कारण बना। भाजपा ने भी आप पर हर मंचों से जोरदार प्रहार किया। खासतौर पर दिल्ली शराब नीति कथित घोटाले पर भाजपा ने आप पर तीखे वार किए। यहां तक कि इस मामले में न खुद पार्टी मुखिया केजरीवाल को जेल जाना पड़ा बल्कि सेनापति माने जाने वाले मनीष सिसोदिया से लेकर सत्येंद्र जैन और संजय सिंह तक को जेल हुई। लोगों के बीच में इस बात का संदेश साफ गया कि जो पार्टी खुद को कट्टर ईमानदार कहकर सत्ता में आई थी वो भ्रष्टाचार के दलदल में धंस गई है। केजरीवाल ने हमेशा से वीआईपी कल्चर पर सवाल उठाए, लेकिन इस बार शीश महल को लेकर उन पर ही सवाल खड़े हो गए। भाजपा-कांग्रेस ने आप को जमकर घेरा। दबाव को भांपकर सितंबर 2024 में केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया। बड़े नेताओं का जेल जाना और अदालती शर्तों से बंधे रहना चुनाव से पहले बड़ा टर्निंग पॉइंट रहा और इसका सीधा फायदा भाजपा को मतदान के तौर पर मिला। इधर, भाजपा ने हाल के वर्षों में राज्य के सभी चुनावों में मुफ्त योजनाओं का एलान किया और इसका सीधा फायदा उसे राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में मिल चुका है। इस बार भाजपा का मुकाबला ऐसी पार्टी से जिससे देश की सभी पार्टियों ने मुफ्त योजनाओं के एलान का सबक सीखा। भाजपा ने आप की इसी मजबूत कड़ी को काटने के लिए दिल्ली में महिलाओं को 2500 रुपये, 500 रुपये में गैस सिलेंडर, फ्री बिजली-पानी जैसी योजनाओं का न केवल एलान किया, बल्कि ये भी घोषणा की कि जो योजना पहले से दिल्ली में लागू हैं वो आगे भी जारी रहेंगी। इसके अलावा एक और बात जो भाजपा हर राज्य में कहती आ रही थी, वो है डबल इंजन सरकार की बात। दिल्ली में भी यही कहकर वोट मांगे गए। दिल्ली में आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच लड़ाई जगजाहिर है। इससे लोगों के मन में एक नकारात्मक छवि बनी और लोगों को सोचने पर मजबूर किया कि केंद्र और दिल्ली दोनों जगह भाजपा की सरकार होगी तो विकास कार्यों में तेजी आएगी। साथ ही भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने दिल्ली में इस बार लगातार विकास की बात की और दिल्ली की दुर्दशा को सुधाने का एलान किया। भाजपा 2014 की रणनीति पर एक बार फिर से पीएम मोदी के चेहरे चुनाव पर चुनाव लड़ा। भाजपा ने हर बार की तरह इस बार भी अपने मुख्यमंत्री पद के चेहरे का एलान नहीं किया, जबकि आम आदमी पार्टी लगातार उस पर इस बात का हमला करती रही कि भाजपा की बरात में दूल्हा कौन है? हालांकि आप के इस नैरेटिव को भाजपा ने हावी होने नहीं दिया पीएम के चेहरे पर ही चुनाव में उतरी। इसका नतीजा अब सबके सामने हैं। सभी जनसभाओं में भाजपा ने लोगों के सामने अपने संकल्प पत्र को एक ही बात कहकर पेश किया ‘मोदी की गारंटी’। कहीं न कहीं दिल्ली की जनता को इस नारे पर यकीन हुआ और जो परिणाम अब सामने आए हैं ये उसी का नतीजा है।
दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने से पहले से केजरीवाल और तमाम आप नेता यमुना की सफाई के मुद्दे को उठाते रहे। तत्कालीन दिल्ली सरकार को भाजपा ने हर मंचों से आड़े हाथों लिया और उसके दावों पर प्रहार किए। खासतौर पर केजरीवाल के उस बयान को भुनाया जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर मैं यमुना साफ करने में कामयाब न रहा तो मुझे वोट मत देना। इस बयान से केजरीवाल और पार्टी दोनों की छवि पर काफी डेंट पड़ा। इसके अलावा दिल्ली के घरों तक पहुंचने वाला गंदा पानी, खस्ताहाल सडक़ें और बारिश के मौसम में जलभराव के मुद्दे ने भी केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ाईं और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। सबसे बड़े और अहम कारण की बात करें तो पिछले दो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीती। यही सिलसिला इस बार भी रहा। हालांकि, 2015 में कांग्रेस को 9.7 फीसदी तो 2020 में 4.3 फीसदी वोट मिले। इस बार यह आंकड़ा 6.62 फीसदी वोट मिलते दिखाई दे रहे हैं। लोकसभा में विपक्षी एकता का नारा लगाकर भाजपा को चुनौती देने वाली आप और कांग्रेस की विधानसभा चुनाव में राहें अलग-अलग हो गईं। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंकी। इसका असर परिणामों में दिखाई दे रहा है। कांग्रेस का वोट शेयर बढऩे की वजह से ‘आप’ को नुकसान हुआ। अब चुनाव परिणाम के बाद हो सकता है कि यह कहना अतिश्योक्ति हो कि अगर कांग्रेस और आप एक साथ होते तो परिणाम बदल सकता था..। लेकिन अब दिल्ली चुनाव विपक्ष के लिए आगामी चुनावों के लिए सीख की तरह है कि बंटोगे तो कटोगें!