गांवों की सरकार के लिए अब ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’..समय पर चुनाव की मांग; सरपंच करेंगे जयपुर कूच!

पंचायत चुनाव के फैसले से पहले 6 दिसम्बर को सरपंच सडक़ पर उतरने के लिए तैयार, पंचायतों में प्रशासक लगाने की संभावनाओं के चलते किया फैसला

प्रशासक लगने पर सरपंचों के खत्म हो जाएंगे सभी अधिकार, हालांकि सरकार की तैयारियों के बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने जनवरी में पंचायत चुनाव करवाने की कवायद की शुरू

जयपुर। प्रदेश में गांव की सरकार इन दिनों प्रेशर पॉलिटिक्स का सहारा ले रही है। वजह है प्रदेश में पंचायत चुनाव। राज्य में 40 प्रतिशत पंचायतों का कार्यकाल जनवरी में पूरा हो रहा है। ऐसे में सरपंचों को आशंका है कि निकायों की तरह पंचायतों में भी प्रशासक लगाकर उनके हाथ से कुर्सी छीन ली जाएगी। प्रशासक लगने पर सरपंचों के सभी अधिकार खत्म हो जाएंगे, इसलिए सरपंच चाहते है कि या तो तय समय पर चुनाव हो, या वन स्टेट वन इलेक्शन की तर्ज पर चुनाव हो। लेकिन इस दौरान प्रशासक नहीं लगाकर सरपंचों को पंचायतों का चेयरमैन बनाकर सभी अधिकार उन्हें ही दिए जाएं। इस मांग को लेकर ग्रामीण विकास मंत्री किरोड़ीलाल मीणा से मुलाकात कर चुके है, जिसके बाद सरपंचों ने जयपुर कूच का ऐलान कर दिया। 6 दिसंबर को प्रदेशभर के सरपंच जयपुर कूच करेंगे। 
इसी बीच सरकार की तैयारियों के बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने जनवरी में पंचायत चुनाव करवाने की तैयारी शुरू कर दी है। राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव के लिए वोटर लिस्ट अपडेट करने के लिए प्रगणक नियुक्त करने को कहा है। पंचायत के तीन या चार वार्डों के लिए एक प्रगणक नियुक्त होगा। एक प्रगणक के पास आवंटित वार्डों में 1100 से ज्यादा वोटर नहीं होंगे। आयोग ने बूथ लेवल ऑफिसर को ही प्रगणक नियुक्त करने को कहा है। दरअसल, पंचायतों में प्रशासक लगने पर सरपंच और वार्ड पंच नहीं रहते। पंचायत के सारे अधिकार प्रशासक के पास ही रहते हैं। जो विकास के काम सरपंच स्तर पर होते थे, वे प्रशासक मंजूर करता है। साथ ही पंचायती राज और शहरी निकायों के चुनाव 5 साल में करवाने की कानूनी बाध्यता है। विशेष परिस्थितियों में ही इसे टालने का प्रावधान है। इसके लिए भी सुप्रीम कोर्ट तक जाना होता है। हालांकि पंचायतीराज मंत्री मदन दिलावर कह चुके है कि पंचायत चुनाव का फैसला कैबिनेट लेगी।

चुनाव टालने में दिक्क्त, सरकार करवा रही कोर्ट के फैसले का अध्ययन 

जानकारी के अनुसार पिछले दिनों पंजाब में निकाय और पंचायत चुनावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से राजस्थान में भी लंबे समय तक चुनाव टालने में दिक्कत आ सकती हैं। कोरोना के वक्त भी चुनाव टालने के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। सरकार ने पिछले दिनों शहरी निकायों के वार्डों के परिसीमन का फैसला किया। वार्ड परिसीमन के कारण चुनाव आगे टालने का आधार मिल गया। पंचायतों के चुनाव आगे खिसकाने के लिए भी पंचायतों के वार्डों का फिर से सीमांकन करवाने का आधार हो सकता है। ऐसे में पंचायतों के वार्ड परिसीमन पर भी कानूनी राय ली जा रही है। वहीं पिछले दिनों पंजाब में निकाय और पंचायत चुनावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से राजस्थान में भी लंबे समय तक चुनाव टालने में दिक्कतें आ सकती हैं।

वन स्टेट वन इलेक्शन में फिलहाल कानूनी अड़चन, अलग-अलग स्तर पर मंथन जारी
वन स्टेट वन इलेक्शन को लेकर कई तरह की कानूनी अड़चनें हैं। कानूनी दिक्कतों को दूर करने के लिए सरकार में अलग-अलग स्तर पर मंथन चल रहा है। 73वें और 74वें संविधान संशोधन के बाद ग्राम पंचायत और शहरी निकायों के चुनाव हर 5 साल में करना अनिवार्य है। इन्हें आपात स्थिति को छोडक़र आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। सरकार वार्ड परिसीमन को कानूनी बचाव के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है। सरपंच संघ का तर्क है कि प्रशासक लगाने की जगह पंचायत लेवल पर सरपंच-वार्ड पंचों की कमेटी को अधिकार दे दिए जाएं। चुनाव होने तक वही कमेटी पंचायत चलाए।

इधर, कांग्रेस भी निकाय चुनाव को लेकर करेगी आंदोलन, 2 से ज्यादा बच्चे होने पर भी चुनाव लडऩे की मांग
इस बीच स्थानीय निकायों के चुनाव स्थगित करने के मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने जन आंदोलन करने का निर्णय लिया गया। हाल ही में हुए एक अधिवेशन में स्थानीय निकायों में चुनाव में दो बच्चों के नियम को निरस्त करने और 73वां व 74वां संविधान संशोधन के विषयों को स्थानीय सरकारों को सौंपने की आवश्यकता जताई। ग्राम सभा को सशक्त करने एवं कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सोशल ऑडिट तथा जनसुनवाई जैसे राजनीति के नए साधनों के इस्तेमाल पर जोर दिया। वहीं, पंचायती राज संगठन से जुड़े हुए लोगों को आगामी लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में पार्टी में अधिक भागीदारी दिए की मांग भी रखी गई।