कांग्रेस और गठबंधन ने इस बार भाजपा को सियासी चालों में फंसा दिया, लेकिन पीएम मोदी के लिए राजस्थान में क्लीन स्वीप करना सबसे ज्यादा जरूरी; इसीलिए झोंक रखी है पूरी ताकत
मोटे तौर पर देखा जाए तो नागौर, बाड़मेर-जैसलमेर, जयपुर ग्रामीण, दौसा, कोटा, बांसवाड़ा-डूंगरपुर और चूरू में फंसता दिख रहा पेंच, हालांकि इक्का-दुक्का अन्य सीटों पर भी उलटफेर संभव
जयपुर। लोकसभा चुनाव में भाजपा का 400 पार का दावा और इस दावे को साकार करने के लिए सबसे जरूरी है राजस्थान में मिशन-25 का पूरा होना। क्योंकि राजस्थान के बिना पीएम मोदी का ख्वाब पूरा होना मुमकिन नहीं है। यहीं वजह है कि प्रधानमंत्री का भी राजस्थान पर खास फोकस है और मिशन-25 के लिए खुद वे पूरी ताकत झोंके हुए है। लेकिन, भाजपा के इस ख्वाब को ख्वाब ही बनाए रखने के लिए कांग्रेस और इंडी गठबंधन ने भी इस बार ऐसी सियासी बिसात बिछाई है जिसने भाजपा के थिंक टैंक को एक बार फिर से नई रणनीति बनाने के लिए मजबूर कर दिया है। आज इस रिपोर्ट में राजस्थान की उन सीटों की चर्चा करने जा रहे है जिनकी वजह से भाजपा का 400 पार का दावा और राजस्थान में मिशन 25 नाकाम हो सकता है। दरअसल, प्रदेश में कुल साल सीटे ऐसी है जिन पर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है। हालांकि इसके अलावा इक्का-दुक्का और ऐसी सीटें है जिन पर पार्टी को कठिनाई हो सकती है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा के मिशन-25 में इस बार साढ़े सात का फेरा आड़े आ रहा है। मोटे तौर पर बात की जाए तो प्रदेश की इन सात सीटों में नागौर, बाड़मेर-जैसलमेर, जयपुर ग्रामीण, दौसा, कोटा, बांसवाड़ा-डूंगरपुर और चूरू की सीट शामिल है। हालांकि प्रदेश की दो सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति भी बनी हुई है लेकिन इस बार का चुनाव कांग्रेस गठबंधन और भाजपा दोनों के लिए ही आसान नहीं रहने वाला है।
1. नागौर में हनुमान बेनीवाल ने इंडी गठबंधन से नाता जोड़ा, भाजपा के लिए मिर्धा ने कांग्रेस को छोड़ा; अब होगा क्या?
सबसे पहले बात करें प्रदेश की सबसे हॉट सीट नागौर की तो हनुमान बेनीवाल की दावेदारी ने मुकाबला काफी रोचक बना दिया है। हालांकि इस सीट पर गठबंधन होने या नहीं होने को लेकर काफी वक्त लिया गया लेकिन आखिरकार कांग्रेस ने यह सीट गठबंधन के लिए यानि आरएलपी के लिए छोड़ दी। आरएलपी को भी यहां प्रत्याशी चयन में काफी दिमाग खपाना पड़ा लेकिन आखिरकार भाजपा की प्रत्याशी ज्योति मिर्धा के सामने हनुमान बेनीवाल के अलावा कोई मजबूत चेहरा नजर नहीं आया। हनुमान बेनीवाल के मैदान में उतरते ही गठबंधन का चेहरा खिल गया तो भाजपा के माथे पर हल्की शिकन तो जरूर महसूस हुई। ऐसा ही कुछ माहौल नागौर में नजर भी आ रहा है। दोनों ही प्रत्याशी प्रचार में कोई कसर नहीं रख छोडऩा चाहते और दिन-रात एक किए गए है। लेकिन, बेनीवाल को कांग्रेस का समर्थन होने के चलते बेनीवाल को अतिरिक्त लाभ जरूर मिलता दिख रहा है। वहीं बात अगर ज्योति मिर्धा की करें तो कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने ही पार्टी ने उन्हें टिकट दे दिया लेकिन उनके परंपरागत वोटर्स के मन में क्या है?..यह अब तक सामने नहीं आ सका है। ऐसे में दोनों ही प्रत्याशी अपनी जीत का दावा तो कर रहे है लेकिन आश्वस्त नहीं है।
2. जैसलमेर-बाड़मेर लोकसभा सीट पर रविंद्र भाटी की दावेदारी ने फंसाया पेंच, भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
अब दूसरी ऐसी ही सीट है जैसलमेर-बाड़मेर लोकसभा सीट। यह सीट भी काफी चर्चा में रही और इसके चर्चा में रहने का कारण रहा रविंद्र सिंह भाटी। भाटी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़े थे..शानदार जीत भी हासिल की थी। भाटी को उम्मीद थी कि अपनी गलतियों से सीख लेकर भाजपा लोकसभा उन्हें मौका दे सकती है और इसकी संभावना भी जताई जा रही थी। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका। भाजपा ने इस सीट से यहां भाजपा ने केन्द्रीय मंत्री कैलाश चौधरी तो कांग्रेस ने उम्मेदाराम बेनीवाल को उतारा है। कैलाश चौधरी के नाम के ऐलान के बाद भी भाजपा को उम्मीद थी कि रविंद्र सिंह भाटी उन्हें समर्थन दे देंगे, इसकी पूरी कवायद भी की गई मुख्यमंत्री भजनलाल और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से उनकी मुलाकात भी हुई लेकिन बात नहीं बन सकी। आखिर में एक बड़ी जनसभा के बाद रविंद्र सिंह भाटी ने निर्दलीय ताल ठोंकने का ऐलान कर दिया और समर्थकों के हुजूम के बीच नामांकन भी दाखिल कर दिया। अब बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर रविंद्र सिंह भाटी की दावेदारी के बाद इस सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बन गई है और देखना यह है कि इस त्रिकोणीय संघर्ष का किसे फायदा मिलता है और किसे नुकसान?
3. चुरू में आपसी अदावत खमियाजा कोई तो भुगतेगा..लेकिन वो होगा कौन?
तीसरी वह सीट जिसने पेंच फंसा रखा है वह है चूरू लोकसभा सीट। यह सीट विधानसभा चुनाव के बाद से ही सुर्खियां बटोर रही थी और कारण था पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और चूरू सांसद राहुल कस्वां की अदावत।विधानसभा चुनाव हारने के बाद पूर्व मंत्री और नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को लेकर भी जमकर गुटबाजी होती रही है। राठौड़ ने खुद को ‘हारा हुआ नेता’बताते हुए कई बार लोकसभा चुनाव की राजनीति पर बयान दिए। हालांकि इससे भी अधिक उनके ‘जयचंद’ वाले बयान से खलबली मची। राहुल कस्वां से उनकी अदावत और कांग्रेस के इसे भुनाने से यहां चुनाव के सारे समीकरण बदल गए। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राहुल कस्वां का टिकट काट दिया तो उन्होंने पार्टी से बगावत कर दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। 1999 से कस्वां परिवार बीजेपी के बैनर तले चुनाव लडकऱ लोकसभा सीट पर काबिज रहे लेकिन इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। राठौड़ और कस्वां के आरोप प्रत्यारोप के बीच यह सीट जातीय राजनीति में उलझ गई। बीजेपी के नेता भी इस बात को भली भांति समझ रहे थे कि टिकट काटे जाने के बाद राहुल कस्वां पार्टी छोड़ सकते हैं। ऐसे में किसी अन्य जाति का प्रत्याशी उतारने के बजाय पार्टी ने जाट प्रत्याशी को ही चुनाव मैदान में उतारा। राहुल कस्वां की बगावत को भांपते हुए बीजेपी ने पैरा ओलंपिक देवेंद्र झाझडिय़ा को प्रत्याशी घोषित कर दिया। टिकट कटने के बाद राहुल कस्वां ने बीजेपी छोड़ दी और वे कांग्रेस में शामिल हो गए। ऐसे में चूरू में इस बार मुकाबला रोचक हो गया है।
4. बांसवाड़ा-डूंगरपुर में ऐसा हुआ जो सोचा तक नहीं था, अब नतीजे भविष्य के गर्भ में
चौथी सीट है बांसवाड़ा और डूंगरपुर लोकसभा सीट जिसने भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही पसीने छुड़ा रखे है। भाजपा ने यहां से कांग्रेस छोडकऱ भाजपा में शामिल हुए नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीय को टिकट दे दिया तो बीएपी यानि भारत आदिवासी पार्टी ने राजकुमार रोत को पहले ही अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था। अब गेंद कांग्रेस के पाले में थी नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख तक भी कांग्रेस गठबंधन को लेकर असंमजस में फंसी हुई दिखी और नामांकन की समय समाप्ति से महज चंद घंटों पहले अर्जुनसिंह बामनिया को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। लेकिन ड्रामा यहीं खत्म नहीं हुआ और अर्जुनसिंह बामनिया नामांकन दाखिल करने पहुंचे ही नहीं और कांग्रेस ने आनन-फानन में अरविंद डामोर से नामांकन दाखिल कर दिया। असली खेल तब शुरू हुआ जब नामांकन वापसी के ठीक एक दिन पहले कांग्रेस आलाकमान ने बीएपी प्रत्याशी को समर्थन का ऐलान कर दिया। लेकिन, इसके ठीक बाद अरविंद डामोर फोन स्विच ऑफ कर ऐसे गायब हुए कि किसी के ढूंढ़े भी नहीं मिले। नामांकन वापसी का समय खत्म हो गया और डामोर ने अपना नामांकन वापिस नहीं लिया। अब यहां स्थिति यह है कि भाजपा प्रत्याशी मालवीय के सामने राजकुमार रोत के रूप में एक गठबंधन का प्रत्याशी है तो तीसरे छोर पर कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लडऩे का ऐलान कर चुके अरविंद डामोर। ऐसे में इस बार इस सीट पर काफी रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है।
5. जयपुर ग्रामीण में चौपड़ा को हल्के में लेना पड़ सकता है भाजपा पर भारी
पांचवीं और सबसे अहम सीट है जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट। इस सीट पर भाजपा ने राव राजेंद्र सिंह को एक बार फिर मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने युवा चेहरे अनिल चौपड़ा पर भरोसा जताया है। हालांकि भाजपा यहां जीत की हैट्रिक लगाने को बेताब थी लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी के एलान के बाद हवा का रुख कुछ मुड़ता हुआ नजर आया। बताया जा रहा है कि चौपड़ा के नाम पर काफी सोच-समझकर मुहर लगाई गई थी। आलाकमान ने चौपड़ा के नाम में चयन में उनके युवा होने के साथ ही जातीय समीकरणों को भी साधने का पूरा प्रयास किया है। अब काफी हद तक कांग्रेस आलाकमान का यह फैसला सही भी साबित होता नजर आ रहा है। हालांकि भाजपा को अपनी जीत का अब भी पूरा भरोसा है लेकिन जिस तरह युवा नेता अनिल चौपड़ा प्रचार और जनसंपर्क में रात-दिन एक किए हुए है और कोई कसर नहीं छोड़ रहे है उसे देखते हुए इस सीट पर भविष्यवाणी करने का रिस्क उठाने को कोई तैयार नहीं है।
6. कोटा-बूंदी में कांग्रेस अगर हुई एकजुट तो दिखने को मिल सकते है चौंकाने वाले नतीजे
छठीं और रोचक सीटों में शुमार है कोटा-बूंदी की लोकसभा सीट जो कई कारणों से काफी अहम बनी हुई है। भाजपा ने यहां से एक बार फिर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला पर भरोसा जताया है लेकिन कांग्रेस ने चौंकाने वाला फैसला लेते हुए भाजपा के पूर्व विधायक और कांग्रेस में महज चंद घंटों ही शामिल हुए प्रहलाद गुंजल को टिकट दे दिया। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पर गुंजल द्वारा लगाए गए आरोप और इसके लिए इस्तेमाल की जानी भाषा किसी से छिपी हुई नहीं है। यह बड़ा कारण है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं में अंदरखाने इसका विरोध है। इसका छोटा सा नमूना तभी दिख गया था जब मंच से ही शांति धारीवाल ने गुंजल को कटघरे में खड़ा कर दिया। हालांकि कांगेस नेतृत्व का गुंजल को टिकट देने का फैसला सिर्फ जातीय समीकरणों को साधना और भाजपा के वोटों में सेंध लगाने का था। कांग्रेस ने जहां गुर्जर जाति के प्रत्याशी को मैदान में उतारकर गुर्जर, मुस्लिम, मीणा और एससी वोटर्स पर दांव खेल रही है। वहीं बीजेपी हवाई सेवा के मुद्दे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को भुनाने में जुटी है। कुछ राजनीति के जानकारों का मानना है कि ओम बिड़ला के प्रति थोड़ी एंटी इन्कम्बेंसी नजर आ रही है और अगर कांग्रेस ने एकजुट होकर गुंजल को समर्थन दिया तो यहां भी बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है।
दौसा में मीणा वर्सेज मीणा की जंग, सबसे रोचक मुकाबला तो यही होगा
अब बारी है सातवीं और आखिरी सीट की.. जो है दौसा लोकसभा सीट। इस सीट पर इस बार मुकाबला मीणा वर्सेज मीणा होने जा रहा है। दौसा लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। कहने को तो चुनावी मैदान में 5 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन मुख्य मुकाबला दोनों पार्टियों के बीच ही है। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार मुरारी लाल मीणा चार बार के विधायक होने के साथ वर्तमान में भी दौसा विधानसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी के विधायक चुने गए हैं। मुरारी लाल मीणा को राजनीति का माहिर खिलाड़ी भी माना जाता है। वे तत्कालीन गहलोत सरकार में कृषि विपणन राज्य मंत्री रहे हैं और उन्हें सचिन पायलट का करीबी नेता भी कहा जाता है। इधर, भाजपा प्रत्याशी कन्हैयालाल मीणा भी कम नहीं हैं। चार बार बस्सी विधानसभा से विधायकी के साथ मंत्री भी रह चुके हैं। कन्हैयालाल मीणा भाजपा की भैरोसिंह शेखावत सरकार में मंत्री रहे है। कन्हैया लाल मीणा की छवि भी राजनीति के क्षेत्र में साफ सुथरी मानी जाती है। दौसा लोकसभा सीट पर सीधी टक्कर भाजपा के कन्हैया लाल मीणा और कांग्रेस से प्रत्याशी मुरारी लाल मीणा में होगी और मुकाबला भी कड़ा होगा। क्योंकि यह सीट एसटी है और मीणा मतदाताओं का इस सीट पर अच्छा खासा दखल रहता है। लेकिन अब ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो गुजरते वक्त के साथ 4 जून को ही पता लग सकेगा।