श्री कर्ण नरेंद्र कृषि महाविद्यालय में वैश्विक व्यापार और भारतीय कृषि पर हुई परिचर्चा

कुलपति डॉ. बलराज सिंह ने कहा-भारत के कृषि उत्पादों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करने की जरूरत, बोले-भारतीय कृषि की वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन ही एक मात्र विकल्प


जोबनेर। श्री कर्ण नरेंद्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर में ‘वैश्विक व्यापार (टैरिफ) और इसका भारतीय कृषि पर प्रभाव’ विषय पर एक विशेष संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति डॉ. बलराज सिंह ने की। कुलपति डॉ बलराज सिंह ने वैश्विक व्यापार और टैरिफ से उत्पन्न चुनौतियों एवं संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की।
कार्यक्रम के दौरान कुलपति डॉ. बलराज सिंह ने बताया कि टैरिफ का अर्थ है किसी देश में आयातित सामान पर कर लगाकर उसे महंगा करना, जिससे घरेलू उत्पादकों को सुरक्षा मिल सके। हालांकि, इस प्रकार के वैश्विक व्यापार और बढ़ते करों (टैरिफ) का सीधा असर आम उपभोक्ताओं और किसानों पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि करों में वृद्धि से अंतिम उपभोक्ता को अधिक कीमत चुकानी पड़ती है, जिससे महंगाई और बेरोजगारी दोनों में वृद्धि होगी। भारत की विशाल जनसंख्या और छोटे जोत वाले किसानों के कारण उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा कमजोर होती है। यदि वैश्विक व्यापार के कारण टैरिफ बढ़ते हैं, तो बदले में दूसरे देश भी अपने टैरिफ बढ़ा देते हैं, जिससे भारत में महंगाई बढऩे की संभावना अधिक हो जाती है। इसे रेसिप्रोकल टैरिफ कहा जाता है।
डॉ. बलराज सिंह ने कहा कि इस स्थिति में किसानों के लिए नई संभावनाएँ भी मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है और चावल, चीनी, मसाले जैसे कृषि उत्पादों का निर्यात अधिक होता है। हालांकि, वैश्विक बाजार में हो रहे बदलावों पर नजर रखनी होगी और नीतियों में सुधार करना होगा, जिससे कृषि और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिले। अर्थशास्त्र विभाग के प्रभारी डॉ. शीला खर्कवाल ने कहा कि वैश्विक मंदी भारत के लिए एक प्रकार की व्यापारिक लड़ाई की तरह है। यदि वैश्विक स्तर पर टैरिफ कम होता है, तो आयात सस्ता हो जाएगा, जिससे भारतीय किसानों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी। इस कार्यक्रम के दौरान डॉ. शैलेश मार्कर, डॉ. पीएस शेखावत, डॉ. राजेश, डॉ. सुभीता कुमावत तथा एम एससी, पीएच.डी. और अन्य महाविद्यालय के लगभग 176 छात्र-छात्राएं हाइब्रिड मोड से जुड़े।