राजस्थान प्रदेश की द्वितीय राजभाषा बने राजस्थानी

आरटीआई कार्यकर्ता ओमप्रकाश ओझा ने किया सरकार से आग्रह, कहा- राजस्थान विधानसभा में प्रस्ताव लिए बिना बनाया हिंदी को राजस्थान की राजभाषा, भारत को स्वतंत्रता मिली और राजस्थानियों से उनकी भाषा छिनी, आजादी के समय हिंदी बोलने वालों से लगभग चौगुनी थी राजस्थानी बोलने वालों की संख्या

जयपुर/चूरू, 15 मई। राजस्थानी भाषा के संवद्र्धन, संरक्षण और मान्यता के लिए प्रयासरत आरटीआई कार्यकर्ता ओमप्रकाश ओझा ने राजस्थानी भाषा को प्रदेश की द्वितीय राजभाषा बनाए जाने का आग्रह राज्य सरकार से किया है।

आरटीआई कार्यकर्ता ओझा ने बताया कि 15 अगस्त 1947 को भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली। भारत सरकार ने राज्य पुर्नगठन आयोग की सिफारिश पर सभी राज्यों की सीमाएं भाषाई और सांस्कृतिक आधार पर बल देते हुए निर्धारित की। देशी रियासतें पूरे भारत में पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक फैली हुई थी, उन सभी का राज्यों में अधिमिलन इस फॉर्मूले के आधार पर किया गया लेकिन पूर्व में राजपूताना और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् राजस्थान को इस कवायद से अलग रखा गया था। ओझा ने बताया कि मार्च 1952 में राजस्थान विधानसभा स्थापित हो चुकी थी। महाराजा सवाई मानसिंह राजस्थान के प्रथम राजप्रमुख बने। तत्पश्चात् सरदार गुरूमुख निहाल सिंह राजस्थान के प्रथम राज्यपाल बने। राज्य सरकार ने जो सबसे पहला कार्य किया वो था, गुपचुप तरीके से राजस्थान की राजस्थानी भाषा को हटाकर, हिन्दी भाषा को राज्य में लागू करना। राज्य सरकार ने बिना रेफरेन्डम किए और बिना राजस्थान विधानसभा में प्रस्ताव पास किए, राजप्रमुख महाराजा मानसिंह के हस्ताक्षरों से 06 दिसम्बर 1952 को हिन्दी को राजभाषा घोषित कर दिया। इसी अध्यादेश को पुनः दिनांक 28 दिसम्बर 1956 को राज्यपाल सरदार गुरूमुख निहाल के हस्ताक्षरों से रिपीट किया गया। विडम्बना यह है कि पूर्व में राजपूताना जिसे 7 चरणों में देशी रियासतों के अधिमिलन द्वारा राजस्थान नाम दिया गया था, उस प्रदेश में जिसमें हिन्दी भाषा, कभी राजभाषा रही ही नहीं थी। उस प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत और भाषा को समाप्त करने का कार्य किया गया, जो कि अभी तक निरन्तर चालू है।

ओझा ने सरकार से किए अपने पत्राचार की जानकारी देते हुए बताया कि राजस्थान सरकार द्वारा हिन्दी को राजभाषा घोषित करते हुए 2 बार अधिसूचनाएं लागू की गई थी, उनको कभी राजस्थान विधानसभा से पास ही नहीं करवाया गया था। यहाँ तक कि राज्य सरकार का भाषा विभाग, शिक्षा विभाग और संसदीय कार्य विभाग ऎसा कोई दस्तावेज उपलब्ध कराने में नाकाम रहा है कि पूर्व में जारी दोनों नोटिफिकेशन या अध्यादेशों को किसी राजकीय व्यवस्था के अन्तर्गत उनके विभागों ने कार्यवाही करते हुए, पूर्व राजप्रमुख या प्रथम राज्यपाल के हस्ताक्षरों के लिए प्रस्तुत किया होगा। राजस्थान विधानसभा का सचिवालय भी अपने पुराने दस्तावेजों को इस जानकारी के लिए खंगाल रहा है कि अब विवादित दोनों अध्यादेशों को राजस्थान विधानसभा द्वारा कभी पास किया गया था या नहीं ?  इमरजेंसी में राज्य सरकार अध्यादेश तो निकाल सकती है, लेकिन इसे संविधान में निर्धारित 6 महीनों की समयावधि के दौरान विधानमण्डल से पास करवाना अनिवार्य होता है। ऎसा नहीं करने पर अध्यादेश की वैधता स्वयं समाप्त हो जाती है और सरकार असंवैधानिक रूप से कार्य कर रही होती हैं। ओझा ने 13 मई 2024 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिखे पत्र में सन् 1951 की जिलेवार भाषाई जनगणना के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि राजस्थान में हिन्दी भाषा कभी राजकीय भाषा का दर्जा प्राप्त नहीं थी। राजस्थान सरकार ने सन् 1951 में जो जिलेवार भाषाई जनगणना के आंकड़े जारी किए थे, जिनकी प्रिंटिंग भी जोधपुर और बीकानेर स्थित सरकारी प्रेस में हुई थी, उसके अनुसार राजस्थान में राजस्थानी भाषा बोलने वालों की संख्या 1,04,09,351 थी। वहीं हिन्दी भाषा बोलने वालों की संख्या महज 28,46,725 थी। ब्रजभाषा बोलने वालों की संख्या 1,71,908 थी। लगभग एक चौथाई लोग ही उस समय राजस्थान के विभिन्न जिलों में थे जो हिन्दी बोलते थे। हिन्दी बोलने वालों में अन्य प्रदेशों के वे प्रवासी लोग थे जो अपने जीवनयापन के लिए राजस्थान में रह रहे थे या रियासतों की सरकारी सेवा में थे। राजस्थानी भाषा बोलने वालों की संख्या को दरकिनार करते हुए, हिन्दी भाषा को राजकीय भाषा घोषित करना और वह भी निर्धारित प्रक्रिया को नही अपनाना, प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त के खिलाफ और न्यायिक व्यवस्था को धता बताना था। ओझा ने बीच का रास्ता अपनाते हुए राजस्थानी भाषा और ब्रज भाषा दोनों भाषाओं को राज्य स्तर पर द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने का आग्रह किया था। इस आग्रह को राज्य सरकार द्वारा मानना तो दूर की बात है, राजस्थान सरकार ने राजस्थानी को माध्यमिक स्तर पर तृतीय भाषा के रूप में, वैकल्पिक विषय के रूप में, पढ़ाया जाना भी मंजूर नहीं किया।  ओझा ने राजस्थान राज्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर के प्रशासक का ध्यान इस ओर दिलाया कि बोर्ड ने 28 अगस्त1997 को निर्णय किया था कि राजस्थानी भाषा भी अन्य भाषाओं यथा मलयालम, कन्नड़, बंगाली, गुजराती, पंजाबी आदि की तरह तृतीय वैकल्पिक भाषा के रूप में पढ़ाई जावेगी। बोर्ड के प्रशासक ने दिनांक 29.11.2022 को सूचित किया था, कि राजस्थानी भाषा 27 वषोर्ं के पश्चात् भी बच्चों के लिए, इसलिए लागू नहीं हो सकी, क्योंकि राजस्थानी भाषा पाठ्यक्रम समिति का गठन नही हुआ है।