स्कूलों के नए सत्र के साथ ‘टेंशन में अभिभावक’..सुप्रीम कोर्ट के आदेश गुल; मनमानी फीस वृद्धि!

राजधानी में निजी स्कूलों पर मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने का आरोप, अभिभवक दे रहे फीस विनियामक अधिनियम विधेयक (स्कूल फीस एक्ट 2016-17) का हवाला, शिक्षा मंत्री बोले-अब तक नहीं मिली शिकायत

जयपुर। प्राइवेट स्कूलों में नया शिक्षा सत्र शुरू होने जा रहा है। इस बीच स्कूल संचालकों ने सत्र से पहले ही 10 से 25 फीसदी फीस बढ़ा दी है। संयुक्त अभिभावक संघ ने प्राइवेट स्कूल संचालकों पर फीस एक्ट कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना का आरोप लगाया है एवं राज्य सरकार को मूकदर्शक बताया है। संघ ने इसे ‘फीस विनियामक अधिनियम विधेयक’ (स्कूल फीस एक्ट 2016-17) की अवहेलना बताया। संघ ने कहा कि एक्ट के अनुसार स्कूलों को तीन साल में फीस बढ़ाने का अधिकार है। वो भी तब, जब स्कूल फीस एक्ट कानून की पालना सुनिश्चित करता हो। उधर, शिक्षा मंत्री ने अब तक इस संबंध में कोई शिकायत नहीं मिलने की बात कही। प्रदेश में प्राइवेट स्कूल में एडमिशन का दौर जारी है। नया सत्र 2025-26 शुरू की तैयारी है। संयुक्त अभिभावक संघ के अनुसार प्रदेश में निजी स्कूलों की मनमानी लगातार बढ़ रही है। अभिभावकों को आर्थिक संकट में डाला जा रहा है। उन्हें मानसिक तनाव दिया जा रहा है। अभिभावक आवाज उठाता है तो बच्चों का भविष्य खराब कर दिया जाता है। आवाज नहीं उठाते तो मानसिक दबाव में रहते हैं। मनमाने ढंग से फीस बढ़ोतरी पर राज्य सरकार और शिक्षा विभाग मूकदर्शक हैंं। निजी स्कूल खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे है।

कुछ स्कूलों में स्कूल लेेवल फीस कमेटी ही बना दी फर्जी 
कुछ स्कूलों ने स्कूल लेवल फीस कमेटी ही फर्जी बना रखी है। इस संबंध में दर्जनों पत्र लिख चुके हैं, लेकिन विभाग ने ​किसी स्कूल पर कार्रवाई नहीं की. इससे अभिभावकों में रोष है। अनुमानित तौर पर देखें तो बड़े स्कूलों की फीस में 10 से 15 हजार रुपए तक की बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में अभिभावक अब फीस भरने की जुगाड़ में जुट गए हैं। वहीं, दूसरी ओर सीमित आय और पढ़ाई का खर्चा बढऩे से घर का बजट बिगड़ रहा है। शहर में करीब 40 से अधिक बड़े स्कूल हैं, इनमें पढऩे वाले करीब डेढ़ लाख बच्चों के घर फीस बढ़ोतरी से प्रभावित हो रहे हैं। सरकार ने निजी स्कूलों की फीस पर लगाम कसने के लिए फीस एक्ट 2017 लागू कर रखा है। लेकिन इस एक्ट के तहत स्कूलों पर कार्रवाई नहीं की जाती।

गठित कमेटियों की 6 साल से जांच तक नहीं, 2017 से लागू है स्कूल फीस एक्ट
स्कूल में पीटीए (पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन) का गठन नियमानुसार नहीं किया गया। ऐसे में फीस बढ़ोतरी भी सही नहीं है। सवाल उठता है कि फीस एक्ट 2017 बनने के बाद आज तक शिक्षा विभाग ने एक भी स्कूल में कमेटी की जांच नहीं की। हकीकत है कि स्कूलों में पीटीए (पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन) का गठन ही नहीं है। बिना कमेटी ही फीस बढ़ोतरी की जा रही है। स्कूल फीस एक्ट 2016 तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार में पास किया गया. फरवरी 2017 में प्रदेश में लागू हो गया, जिसका निजी स्कूलों ने विरोध किया व सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। संयुक्त अभिभावक संघ ने भी सुप्रीम कोर्ट में केविएट लगाई, जिसे कोर्ट ने स्वीकार किया। संघ के प्रयास से अभिभावकों को फीस एक्ट की जानकारी मिली। फरवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुन अंतरिम आदेश सुनाया। 3 मई 2021 को कोर्ट ने फैसले में फीस एक्ट कानून को प्राथमिकता के साथ लागू करने का आदेश दिया।

क्या है फीस एक्ट, वसुंधरा सरकार में हुआ था लागू
फीस एक्ट के अनुसार हर स्कूल को नए सत्र शुरू होने के साथ ही पेरेंट-टीचर एसोसिएशन (पीटीए) का गठन अनिवार्य है। इसमें स्कूल के हर अभिभावक व टीचर सदस्य हों। इसकी शहरी क्षेत्र में सदस्यता शुल्क 50 और ग्रामीण क्षेत्रों में 30 रुपए है। पीटीए गठन के बाद स्कूलों को स्कूल लेवल फीस कमेटी बनानी होती है। इसमें 10 सदस्य होते हैं, एक अध्यक्ष-जो स्कूल का ट्रस्टी/डायरेक्टर में से हो, एक सचिव-जो स्कूल के प्रिंसिपल होंगे, 3 टीचर-जिसका चयन स्कूल करता है और 5 अभिभावक होते हैं। 5 अभिभावकों के चयन के लिए पीटीए को सूचित कर तय समय तक आवेदन मांगते हैं। निर्धारित समय पर 5 से अधिक अभिभावकों के आवेदन मिलते हैं तो सभी अभिभावकों और टीचरों की उपस्थिति में लॉटरी से पांच अभिभावक चुने जाते हैं। इसकी सूचना हर स्कूल संचालक को स्कूल वेबसाइट व शिक्षा विभाग को देनी होती है।