राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पेश किया नया शपथ पत्र, पूर्व मंत्री धारीवाल और जीएस संधू, दिवाकर समेत तीन अधिकारियों के खिलाफ दायर किया एफिडेविट
2011 में जेडीए द्वारा गणपति कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर शैलेंद्र गर्ग को जारी एकल पट्टे से जुड़ा है मामला, एसीबी में दर्ज शिकायत के बाद शुरू हुआ था मामला, सरकार ने कहा-वरिष्ठ अधिकारियों और उनसे नहीं ली गई सलाह
जयपुर। राजस्थान सरकार ने एकल पट्टा प्रकरण में अपने रुख में चौंकाने वाला यू-टर्न लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक नया एफिडेविट पेश किया है, जिसमें कांग्रेस विधायक शांति धारीवाल सहित तीन अन्य अधिकारियों पर मामले की स्थिति को फिर से परिभाषित किया गया है। यह मामला 2011 में जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) द्वारा गणपति कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर शैलेंद्र गर्ग को जारी एकल पट्टे से जुड़ा है, जिसके खिलाफ 2013 में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में शिकायत दर्ज की गई थी। इस मामले में तत्कालीन एसीएस जीएस संधू, डिप्टी सचिव निष्काम दिवाकर, जोन उपायुक्त ओंकारमल सैनी, शैलेंद्र गर्ग और दो अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी।
दरअसल, छह महीने पहले, जब सरकार ने सभी आरोपियों को क्लीन चिट दी थी, तब यह कहा गया था कि एकल पट्टा प्रकरण में कोई मामला नहीं बनता है। लेकिन अब, सरकारी पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया है कि एसीबी की पहले की क्लोजर रिपोर्टों में सभी तथ्यों को शामिल नहीं किया गया था, और उन्होंने यह भी दावा किया कि वरिष्ठ अधिकारियों से सलाह नहीं ली गई थी। एसीबी ने इस प्रकरण में 2014 से ही जांच शुरू की थी, और 2013 में तत्कालीन एसीएस जीएस संधू, डिप्टी सचिव निष्काम दिवाकर और जोन उपायुक्त ओंकारमल सैनी जैसे अधिकारियों की गिरफ्तारी की गई थी। फिर भी, सरकार की ओर से उन्हें क्लीन चिट दिए जाने के बाद, इस मामले की गंभीरता को फिर से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने पहले एसीबी की दो क्लोजर रिपोर्टों को किया था खारिज
हाईकोर्ट ने पहले एसीबी की दो क्लोजर रिपोर्टों को खारिज कर दिया था, और राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ केस वापस लेने की कार्रवाई को सही ठहराया। लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट में मामला तूल पकड़ रहा है। परिवादी रामशरण सिंह की मृत्यु के बाद, उनके बेटे सुरेंद्र सिंह ने भी केस वापस लेने की सहमति दी थी, लेकिन यह स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार का यह मामला सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर नहीं बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ यह लड़ाई केवल शिकायतकर्ताओं तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। आरटीआई एक्टिविस्ट अशोक पाठक ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई एसएलपी में सही ही कहा है कि राज्य सरकार की ओर से आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के केस को वापस लेना जनहित में नहीं है।
एकल पट्टा प्रकरण में गहरी है भ्रष्टाचार की जड़, जांच भी हुई प्रभावित
इस प्रकरण से स्पष्ट है कि राजनीतिक आकाओं के दखल से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच प्रभावित हो रही है। एकल पट्टा प्रकरण केवल एक उदाहरण है, जहां भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं और इसे खत्म करने की आवश्यकता है। अगर सरकार सच में ईमानदारी से काम करना चाहती है, तो उसे न केवल मामले की गहराई में जाना होगा, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी निभाना होगा। क्या राजस्थान सरकार इस बार सच में बदलाव लाएगी, या यह सिर्फ एक और राजनीतिक ड्रामा है? समय बताएगा।
एएजी ने कहा- वरिष्ठ अधिकारियों और उनसे सलाह नहीं ली गई थी
सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट पेश करने वाले अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) शिव मंगल शर्मा ने बताया कि जो एफिडेविट अप्रैल 2024 में सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया था। उसमें वरिष्ठ अधिकारियों और उनसे सलाह नहीं ली गई थी। सरकार ने मामले से जुड़े केस अधिकारी को भी बदल दिया है। उन्होंने कहा- एसीबी ने जो तीन क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में पेश की थी। वो धारीवाल सहित अन्य अधिकारियों से प्रभावित थी। उन तीनों क्लोजर रिपोर्ट में सभी तथ्यों को शामिल नहीं किया गया था। यहीं वजह थी कि एसीबी कोर्ट ने दो क्लोजर रिपोर्ट खारिज कर दी थी। तीसरी क्लोजर रिपोर्ट पर एसीबी कोर्ट ने कोई निर्णय नहीं लिया था। इसी बीच आरोपी हाईकोर्ट चले गए। इनकी अपील पर 17 जनवरी 2023 को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के संधू, दिवाकर और सैनी के खिलाफ केस वापस लेने को सही माना लिया। ऐसे में मामले की समीक्षा के लिए इसे फिर से ट्रायल कोर्ट को भेज देना चाहिए।
पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के बाद भाजपा सरकार ने भी दी थी क्लीन चिट
एकल पट्टा प्रकरण में तत्कालीन वसुंधरा सरकार के समय 3 दिसंबर 2014 को एसीबी ने मामला दर्ज किया गया था। आरोपियों को खिलाफ चालान भी पेश किया था। उस समय तत्कालीन यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल से भी पूछताछ की गई थी। प्रदेश में सरकार बदलते ही गहलोत सरकार में एसीबी ने मामले में तीन क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी थी। तीनों क्लोजर रिपोर्ट में सरकार ने इस मामले में पूर्व आईएएस जीएस संधू, पूर्व आरएएस निष्काम दिवाकर और ओंकरामल सैनी को क्लीन चिट दी थी।
इससे पहले हाईकोर्ट ने केस वापस लेने की कार्रवाई को माना था सही
एसीबी की दो क्लोजर रिपोर्ट को एसीबी कोर्ट ने खारिज करते हुए 18 अप्रैल 2022 को कुछ बिंदुओं पर डीआईजी स्तर के अधिकारी से जांच कराने के निर्देश दिए थे। उसके बाद एसीबी की ओर से 19 जुलाई 2022 को तीसरी क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई थी। इसमें भी एसीबी ने एकल पट्टा प्रकरण में किसी भी तरह अनियमितता नहीं पाई थी। इस पर एसीबी ने कोर्ट से इन आरोपियों के खिलाफ दायर चार्जशीट को वापस लेने की एप्लिकेशन लगाई थी। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इनकी अपील पर 17 जनवरी 2023 को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के संधू, दिवाकर और सैनी के खिलाफ केस वापस लेने को सही माना था। इस दौरान मामले में परिवादी रामशरण सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे सुरेंद्र सिंह ने भी केस वापस लेने की सहमति दी थी।