आदर्श नगर ‘विधायक रफीक खान’ का बड़ा कारनामा..जमीन पर ‘डबल स्टे’ लेकिन किसान बन किया ‘कांड़’!

इस मामले में एक नहीं बल्कि पेंच, खुलेंगे कई राज 


30 से 35 बीघा भूमि पर निजी खातेदारी एवं जेडीए की सवाई चक भूमि, गैर मुमकिन नाले व गैर मुमकिन रास्ते की भूमि को समतल कर ‘अक्षर एन्क्लेव’ विकसित करने का प्रयास


जयपुर-दिल्ली हाईवे पर ग्राम दौलतपुरा तहसील आमेर का मामला, जमाबंदी में जिस कंपनी को काश्तकार दिखाया; उसके निदेशक के तौर पर आदर्श नगर विधायक रफीक खान का नाम

 

जयपुर। जेडीए भले ही नियम-कायदों का हवाला देकर आम जनता के रिहायशी मकानों पर बुलडोजर चला दे लेकिन रसूखदारों के मामले में जेडीए भी मौन हो जाता है। ताजा मामला जयपुर-दिल्ली हाईवे पर ग्राम दौलतपुरा तहसील आमेर का है। जहां पर तमाम नियम-कायदों को ताक पर रखकर करीब 30 से 35 बीघा भूमि पर निजी खातेदारी एवं जेडीए की सवाई चक भूमि, गैर मुमकिन नाले व गैर मुमकिन रास्ते की भूमि को समतल कर ‘अक्षर एन्क्लेव’ नाम से आवासीय योजना विकसित की जा रही है। मामला हाईप्रोफाइल इसलिए हो जाता है कि जमाबंदी में जिस कंपनी को काश्तकार दिखाया गया है, उसके निदेशक के तौर पर आदर्श नगर विधायक रफीक खान का नाम दर्ज है। 
दरअसल पटवार हल्का दौलतपुरा में मैसर्स निर्मल प्रोपकान प्रा. लि. कंपनी के नाम से काश्त की भूमि है। जमाबंदी में उक्त कंपनी के निदेशक के तौर पर आदर्श नगर विधायक रफीक खान का नाम दर्ज है। मौके पर पिछले कई दिनों से लगातार जेसीबी चलाई जा रही हैं और जमीन की लेवलिंग की जा रही है और सडक़ डालने की तैयारी है। जबकि इस जमीन को लेकर रेवेन्यू बोर्ड का स्टे है, एसडीएम कोर्ट का स्टे है। एसडीएम स्तर पर धारा 177 की कार्रवाई की जा चुकी है। इतना ही नहीं अपनी काश्त की जमीन के अलावा मौके पर कंपनी के निदेशकों की शह पर आस-पास के खसरों में स्थित जेडीए की जमीन पर भी कब्जा कर लिया गया है। साथ ही इस जमीन के बीच में से एक नाला निकल रहा था, जिसके संबंध में अब्दुल रहमान प्रकरण का नोट लगा हुआ है और रेफरेंस भी पेश किया जा चुका है। उसे भी पाट कर कंपनी निदेशकों ने अपनी जमीन में मिला लिया है।

प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल, प्रशासन की मिलीभगत या प्रश्रय?
मौके पर इतने बड़े एरिया में धड़ल्ले से काम चल रहा है। ना जेडीए को अपनी जमीन की फिक्र है और ना तहसील कार्यालय को रेवेन्यू की। जमाबंदी में कुछ जमीन नाले की है, कुछ जमीन पर अब्दुल रहमान प्रकरण का नोट है, कुछ जमीन पर धारा 177 की कार्रवाई हो चुकी है और कुछ जमीन पर स्टे दिया हुआ है। ये सारा काम किया है आमेर तहसील ने और इसके बाद भी मौके पर चल रहे काम को रूकवाने का कोई प्रयास तहसील कार्यालय द्वारा नहीं किया गया। लिहाजा आमेर एसडीएम, तहसीलदार और पटवारी की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग रहा है। सवाल ये उठता है कि जब इस गोरखधंधे का खुलासा इन सरकारी अधिकारियों ने अपनी अपने दस्तावेजों में कर दिया तो कार्रवाई नहीं करने के पीछे क्या रसूखदार निदेशक का हाथ है।

मौके पर इन खसरों पर चल रहा काम
कंपनी के नाम दर्ज खसरा नंबर- 1054/1496, 1055, 1056/1, 1058/1, 1059, 992/1494, 1060, 1061, 1062, 1063, 1064, 1064/2, 1064/5, 
जेडीए के नाम दर्ज खसरा नंबर-1065, 1067, 1057

धारा 177 की कार्रवाई और स्टे ऑर्डर भी हवा में उड़ाए
जमाबंदी में मैसर्स निर्मल प्रोपकान प्रा. लि. के नाम दर्ज सभी खसरों पर एसडीएम आमेर ने धारा 177 का नोट लगा रखा है। साथ ही मौके एवं राजस्व रिकॉर्ड की यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे रखा है। इसके बावजूद भी मौके पर जमीन की लेवलिंग का काम धड़ल्ले से जारी है। सुबह सवेरे जेसीबी मशीनें मौके पर चलना शुरू हो जाती हैं और देर शाम तक ये सिलसिला जारी रहता है। इस संबंध में पूरी जानकारी तहसील कार्यालय और जेडीए को है। बावजूद इसके मौके पर कोई सरकारी कारिंदा फटकता तक नहीं है।

बिना भू रूपातंरण करवाए आवासीय योजना लाने की तैयारी
दरअसल, कंपनी ने उक्त खसरों की भूमि का आज दिनांक तक भी भू रूपांतरण नहीं करवाया है। खातेदारी भूमि का आवासीय में बिना भू रूपांतरण करवाए कॉलोनी काटी नहीं जा सकती है। यही कारण कि है कि मौके पर काम शुरू करने से पहले भूमि का भू रूपांतरण करवाने के लिए कंपनी को बार-बार नोटिस जारी किए गए। इसके बाद भी जब कंपनी ने इसकी अनदेखी की तो हल्का पटवारी की रिपोर्ट के आधार पर एसडीएम आमेर ने धारा 177 की कार्रवाई कर दी। इसके बाद भी मौके पर अवैध तरीके से काम किया जा रहा है।

जेडीए की जमीन पर कब्जा, लेकिन जिम्मेदारों को फिक्र तक नहीं
निर्माणकर्ता कितने बेखौफ हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक तरफ तो जमीन का बिना भू रूपांतरण करवाए काम कर रहे हैं। वहीं दूसरे इस काम की आड़ में जेडीए के नाम दर्ज जमीन पर भी कब्जा कर लिया गया। मौके पर कंपनी निदेशक के रसूखों की आड़ में जेडीए के नाम दर्ज खसरा नंबर 1066 और 1065 पर भी कब्जा कर लिया गया है। खसरा नंबर 1066 खातेदारी में गैर मुमकिन नाला के नाम से दर्ज है। इसे पाटकर समतल कर दिया गया है। वहीं खसरा नंबर 1065 सिवाय चक है और जेडीए के नाम से दर्ज है। इस पर भी जेसीबी चलाकर अपने स्वामित्व की जमीन में शामिल कर लिया गया है। इसके अलावा खसरा नंबर 1057 जमाबंदी में गैर मुमकिन रास्ते के नाम से दर्ज है। इसे भी कब्जे में लेकर इस पर लेवलिंग कर सडक़ तैयार की जा रही है।

अब्दुल रहमान प्रकरण को भी हवा में उड़ाया, उड़ रहा मखौल
मौके पर कंपनी ने नियम कायदों की धज्जियां उड़ा दी हैं। जेडीए के स्वामित्व के खसरों पर तो कब्जा किया ही है। कंपनी के नाम दर्ज खसरा नंबर 1059 जमाबंदी में गैर मुमकिन नाला दर्शाया गया है लेकिन इस पर अब्दुल रहमान प्रकरण का नोट लगा है। जमाबंदी के अनुसार ये नोट 4 अक्टूबर 2024 को तहसीलदार आमेर के आदेश पर लगाया गया था। इसके बाद इसका प्रकरण एसडीएम चतुर्थ को भेजा जा चुका है। इतना ही नहीं एसडीएम आमेर की ओर से इस खसरे पर भी धारा 177 की कार्रवाई की गई है। साथ ही मौके एवं राजस्व रिकॉर्ड की यथास्थिति बनाए रखने का नोट भी लगा है। इसके बाद भी इस पर धड़ल्ले से काम चल रहा है।