राजस्थान की राजनीति के लिए काफी अहम होगा अगला महीना..

खींवसर में ‘रहेगा तो सिर्फ बेनीवाल’..कनिका की जीत होगा नया टर्निंग प्वाइंट!

प्रदेश में 7 सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनावों की सबसे हॉट सीट खींवसर पर हो रहा संघर्ष, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और बीजेपी नेता ज्योति मिर्धा की प्रतिष्ठा दांव पर 


जयपुर। प्रदेश में 7 सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनावों के नामांकन भरने का काम शुक्रवार को समाप्त हो गया। इसके साथ ही ये भी तय हो गया है कि इन चुनावों के परिणामों से प्रदेश के सभी प्रमुख सियासी दलों में आंतरिक स्तर पर भूचाल आना तय है। ये चुनाव ये भी तय कर देंगे कि प्रदेश में हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी और राजकुमार रोत की पार्टी बीएपी का कितना अस्तित्व है। सातों सीटों में से खींवसर में हो रहे चुनाव पर सभी की नजरें टिकी हैं। आरएलपी टिकट पर यहां से हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल चुनाव मैदान में हैं। अब स्थिति ये है कि अगर कनिका जीत जाती हैं तो ये कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और बीजेपी नेता ज्योति मिर्धा के लिए करारा झटका होगा। और, अगर कनिका बेनीवाल हार जाती हैं तो फिर पार्टी में आंतरिक संघर्ष भी बढ़ जाएगा। बेनीवाल समझ रहे थे कि इस बार खींवसर से आएलपी की जीत आसान नहीं है। विधानसभा चुनावों में भी खुद बेनीवाल को यहां से नजदीकी मुकाबले में जीत मिली थी। बीजेपी ने यहां से एक बार फिर रेवंतराम डांगा को टिकट दे दिया है, जो कभी बेनीवाल के काफी करीबी हुआ करते थे। विधानसभा चुनावों में भी डांगा ने बेनीवाल को जबर्दस्त टक्कर दी थी। लिहाजा सीट को निकालने के लिए बेनीवाल ने खुद पर ही भरोसा किया। हालांकि इससे पार्टी के कई नेता अंदरखाने नाराज बताए जा रहे हैं। 

ज्योति मिर्धा ने साधा हनुमान बेनीवाल पर सियासी निशाना, परिवारवाद का लगाया आरोप
खींवसर में भाजपा नेता ज्योति मिर्धा ने आएलपी नेता हनुमान बेनीवाल पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने बेनीवाल पर परिवारवाद का आरोप जड़ते हुए उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल को टिकट देने की आलोचना भी की। मिर्धा ने कहा, ‘कल सभी कार्यकर्ता और रेवंतराम जी मेरे घर पर बैठे थे, तब तक इनका कैंडिडेट अनाउंस नहीं हुआ था। सभी कयास लगा रहे थे कि एक दिन पहले भाषण दिया है कि जहर का घूंट पीना पड़ सकता है। हमने भी सोचा इस बार तो कार्यकर्ता को टिकट मिल जाएगा। तभी कनिका जी का नाम सामने आया। अब ये जहर का घूंट तो नारायण जी को पिलाया है।’ ज्योति मिर्धा ने कहा, नाम घोषित होने के बाद कनिका जी प्रेस से बातचीत करने हुए कह रही थी कि मैं महिला सशक्तिकरण के लिए काम करूंगी। हमने कहा कि शुरुआत घर से करो। 

राजस्थान में उपचुनाव की 3 सीटों पर सीधी टक्कर, 4 पर त्रिकोणीय संघर्ष
प्रदेश में जिन 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। अब उनमें से 3 पर भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर होने जा रही है। वहीं 4 सीटें ऐसी भी हैं, जिन पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा। झुंझुनूं, रामगढ़ और दौसा में बीजेपी और कांग्रेस में सीधी लड़ाई होगा। ऐसी ही स्थिति देवली-उनियारा में भी होने की संभावना थी लेकिन नामांकन के आखिरी दिन कांग्रेस के बागी के तौर पर नरेश मीणा के नामांकन भरने से यहां भी त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति देखने को मिल सकती है। नरेश की छवि जुझारू युवा नेता की रही है और युवा मतदाताओं में नरेश मीणा का क्रेज भी है। वो दौसा से टिकट मांग रहे थे लेकिन मना कर दिया गया। इसके बाद देवली-उनियारा से भी उनकी जगह केसी मीणा को प्रत्याशी बना दिया गया। लिहाजा अब ये चुनाव नरेश की प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। यही कारण है कि उनके समर्थकों ने नामांकन के दौरान भी बड़ा शक्ति प्रदर्शन किया। 

खींवसर, सलूंबर और चौरासी विधानसभा सीट पर दिखेगा त्रिकोणीय संघर्ष
इसके अलावा खींवसर, सलूंबर और चौरासी विधानसभा सीट पर भी त्रिकोणीय संघर्ष देखने को मिलेगा। खींवसर में भाजपा से रेवंतराम डांगा, कांग्रेस से रतन चौधरी और आरएलपी से हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल चुनाव मैदान में हैं। इसी तरह सलूंबर से भाजपा से शांता देवी, कांग्रेस से रेशमा मीणा और बीएपी से जितेश कटारा चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं चौरासी सीट से भाजपा टिकट पर कारीलाल ननोमा, कांग्रेस से महेश रोत और बीएपी से अनिल कटारा मैदान में हैं। आरएलपी और बीएपी की मौजूदगी के कारण ही इन तीनों सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के लिए मैदान मारना आसान नहीं है। खासकर खींवसर और चौरासी में। क्योंकि खींवसर आरएलपी और चौरासी बीएपी के प्रभुत्व वाली सीट मानी जाती है।

देवली-उनियारा और सलूंबर में फंसी कांग्रेस, नरेश मीणा ने बागी होकर भरा नामांकन
अभी तक विधानसभा उपचुनावों को आसान मान रही कांग्रेस अब कम से कम दो सीटों पर तो बड़े संघर्ष में फंसती दिखाई दे रही है। देवली-उनियारा में नरेश मीणा ने बागी होकर नामांकन भर दिया है। वहीं सलूंबर में पार्टी को अपने वरिष्ठ नेता रघुवीर मीणा की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। जिन्होंने पार्टी की अधिकृत प्रत्याशी रेशमा मीणा की टिकट का विरोध कर दिया है। शुक्रवार को रेशमा मीणा के नामांकन से भी रघुवीर मीणा ने दूरी बनाए रखी। उनके समर्थकों ने भी साफ कर दिया है कि वो रेशमा का सहयोग नहीं करेंगे। ऐसे में रघुवीर मीणा की नाराजगी सलूंबर में कांग्रेस की संभावनाओं को झटका लगा सकती है। वो भी तब जबकि बीएपी ने भी अपना प्रत्याशी इस सीट से उतार रखा है। ऐसे में इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस को जबर्दस्त भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है।

उपचुनावों में बिखर गया इंडिया गठबंधन, फायदा किसको होगा; इसी पर पजर
राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं और इन उपचुनावों में प्रदेश में इंडिया गठबंधन पूरी तरह बिखर गया। गत लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने राजकुमार रोत की बीएपी और हनुमान बेनीवाल की आरएलपी से गठबंधन किया था। जिसका असर भी दिखाई दिया और बीजेपी को 11 सीटों पर हार झेलनी पड़ी। लेकिन उपचुनावों में ये गठबंधन कायम नहीं रह सका। बीएपी और आरएलपी ने कांग्रेस से 2-2 सीटों की मांग की थी लेकिन कांग्रेस ने गठबंधन से ही इनकार कर दिया। अब सवाल ये उठता है कि कांग्रेस के बिना गठबंधन चुनाव मैदान में उतरने से चुनावी समीकरण क्या बैठते हैं। क्योंकि गत लोकसभा और विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखें तो आएलपी और बीएपी की मौजूदगी से कांग्रेस के ही वोट कटने हैं। जिसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा।