राजस्थान में डिजिटल इमरजेंसी

राजस्थान में डिजिटल इमरजेंसी
सरकार ने करोड़ों लोगों से छीना इंटरनेट का मौलिक अधिकार
   उदयपुर मर्डर के बाद गहलोत सरकार ने राजस्थान में इंटरनेट बंद कर दिया 1975 में कोई सरकार के खिलाफ नहीं बोल सकता था, न लिख सकता था। आम आदमी के सारे अधिकार सस्पेंड कर दिए गए थे।
ठीक उसी तरह 47 साल बाद राजस्थान में वैसा ही माहौल देखने को मिल रहा है‌। उदयपुर मामले में पुलिस का फैल्योर सामने आ चुका है लेकिन उसकी सजा आम लोगों को डिजिटल माध्यम से दी जा रही है पिछले दो दिन से करोड़ों राजस्थानी डिजिटल कैद झेल  रहे हैं।
 नेटबंदी के नाम पर सरकार ने मौलिक अधिकार छीन लिए हैं‌। सरकार अगर इंटरनेट को मौलिक अधिकार नहीं मानती है तो उसे सुप्रीम कोर्ट की जनवरी 2020 में की गई टिप्पणी दोबारा पढ़नी चाहिए जिसमें कहा गया है इंटरनेट संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लोगों का मौलिक अधिकार है यानी यह जीने के हक जैसा ही जरूरी है

यह पहली बार नहीं है, हर बार सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए इंटरनेट बंदी को ही हथियार बना रही है पेपर लीक नहीं रोक पाते तो इंटरनेट बंद। सरकार की नाकामी के कारण करौली, जोधपुर में दंगे हुए हैं तो इंटरनेट बंद। जम्मू कश्मीर (397बार) के बाद राजस्थान (86बार) दूसरा राज्य है जहां सबसे ज्यादा इंटरनेट बंद होता है राजस्थान में पिछले 10 साल के इन्टरनेट बंद के आंकड़े देखे जाए तो जयपुर ओर सीकर में सबसे ज्यादा 16 बार इन्टरनेट बंद रहा। खास बात यह कि केरल व गोवा में एक बार भी इन्टरनेट बंद नहीं हुआ।
अफवाहें रोकने के लिए नेट बंद, लेकिन सोशल मीडिया एप नहीं
सरकार ने अफवाह रोकने के लिए नेट बंद किया है लेकिन सोशल मीडिया एप प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर फेसबुक और इंस्टाग्राम नहीं।
अफवाह फैलाने वाले अब भी ब्रॉडबैंड कनेक्शन की मदद से सोशल मीडिया ऐप के माध्यम से अफवाह फैला रहे हैं

रिपोर्ट by - दीपेंद्र कुमावत