डीएसपी बने खिलाड़ी के संघर्ष की कहानी

जयपुर@ राजस्थान में पहली बार खिलाड़ियों के लिए आउट ऑफ टर्न सर्विस पॉलिसी लागू की गई है। इसके तहत राजस्थान पुलिस विभाग ने छह खिलाड़ियों को डीएसपी और 11 खिलाड़ियों को सब इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति का आदेश जारी कर दिया है। हम यहां डीएसपी बने खिलाड़ियों के संघर्ष की कहानियां उन्हीं की जुबानी बता रहे हैं।\ दूसरी कड़ी में वर्ल्ड चैंपियनशिप और एशियन गेम्स मेडलिस्ट तीरंदाज रजत चौहान के संघर्ष की कहानी। कभी न हार मानने के जज्बे और परिवार के सपोर्ट ने ही रजत को आज इस मुकाम तक पहुंचाया है। रजत ये भी मानते हैं कि खिलाड़ियों के लिए राजस्थान जैसी आउट ऑफ टर्न सर्विस पॉलिसी किसी दूसरे राज्य में नहीं है।

मां ने अपने जेवर गिरवी रखे तो पापा ने अपनी कार तक बेच दी थी मेरे खेल के लिए

2016 से पहले मैंने काफी अंतरराष्ट्रीय मेडल जीते थे। उसमें एशियन गेम्स, वर्ल्ड कप, वर्ल्ड चैंपियन और एशियन ग्रां प्री के मेडल शामिल थे। लेकिन राजस्थान में खिलाड़ियों के लिए जो आउट ऑफ टर्न सर्विस पॉलिसी बनी उसमें 2016 से पहले के मेडलिस्ट को नौकरी देने का नियम नहीं था। मैं बहुत परेशान था। मैं कंपाउंड छोड़ रिकर्व खेलने लगा था। ओलिंपिक की तैयारियों में जुट गया था। कंपाउंड ओलिंपिक इवेंट नहीं है। एक दिन मैं अपने नेशनल कोच जीवनजोत सिंह से मिलने पटियाला गया था। उन्होंने मुझे समझाया कि रजत कंपाउंड में भारत को तुम्हारी जरूरत है। मेरी बात मानो तुम अभी कंपाउंड खेलो। मैं पसोपेश में था। क्या करूं। फिर उन्होंने राजस्थान में मेरे कोच धनेश्वर मइदा और परिवारवालों पर दबाव बनाया कि रजत को कंपाउंड खेलने के लिए तैयार करो। काफी दबाव के बाद मैंने एक बार फिर कंपाउंड शुरू किया। करीब डेढ़ महीने की प्रैक्टिस के पास मैं वापस रिद्म में आ चुका था।

ये मेरे लिए एक तरह से सोने पे सुहागा वाली बात रही। मेरा 2018 एशियन गेम्स में टीम मेडल लग गया। हम बहुत ही कम मार्जन से गोल्ड जीतने से रह गए थे। लेकिन शुरुआती स्पोर्ट्स पॉलिसी में सिर्फ गोल्ड जीतने वाले को ही ग्रेड-1 नौकरी का नियम था। बाद में हम लोग खेलमंत्री अशोक चांदना से मिले। उन्हेंे समझाया तो उन्होंने कहा, मैं पूरी कोशिश करूंगा कि जो भी ओलिंपिक, एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ मेडलिस्ट हैं उसे ग्रेड-1 नौकरी मिले।

पॉलिसी में बदलाव हुआ और मैं आज डीएसपी बन गया। उस दिन कोच साहब ने कंपाउंड धनुष नहीं पकड़ाया होता तो शायद आज मैं डीएसपी नहीं बन पाता। इसमें मेरे परिवार का भी त्याग है। मेरे खेल के लिए पिताजी ने अपनी कार बेच दी थी। एक समय मां ने अपने जेवर गिरवी रख दिए थे। अब काबिल हो गया हूं। पिताजी को नई कार दिला दी है। एक दिन ओलिंपिक मेडल भी जीतूंगा।’

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